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________________ जैनग्रन्थरताकरे Futukut.kukt.kutntatukkukkukt.kutekakekat.kut.kekuttituteketik-krketiteketiketakikatta पाठक ! इस ग्रन्यकी सम्पूर्ण रचना इसी प्रकारकी है। जिस पद्यको देखते हैं, जी चाहता है कि, उसीको उद्धत कर लें, परन्तु इतना स्थान नहीं है, इसलिये इतनेम ही संतोष करना पड़ता है। आपकी इच्छा यदि अधिक बलवती हो, तो उक्त अन्धका एकवार आद्यन्त पाठ कर जाइये । ॐ नाटकसमयसार मूल, भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्राकृतग्रन्थ । है। उसपर परमभट्टारक श्रीमदमृतचन्द्राचार्यकृत संस्कृत टीका तथा कलशे हैं। और पंडित रायमलजीकृत बालावबोधिनी भाषाटीका है । इन्हीं दोनों तीनों टीकाओंके आश्रवसे कविवरने इस अपूर्व पद्यानुवादकी रचना की है। ३ नाममाला--यह महाकावे श्रीधनंजयकृत नाममालाका माए पद्यानुवाद है। शब्दोंका ज्ञान करने के लिये यह एक अत्यन्त सरल और उपयोगी अन्य है। यह अन्ध हमारे देखनेमें नहीं। आया । परन्तु अन्यप्रकाशक महाशयने मुजफ्फरपुरजिलेके छपरौली प्रामके बालकों को एकबार पढ़ते हुए सुना था, परन्तु पीछे प्रयत्न करने पर भी नहीं मिला । नाममालाके कुछ दोहे नाटक समयसारमें इस प्रकार लिने हैं प्रेमा प्रिपना शेमुपी, धी मेघा मति बुद्धि।। सुरति मनीपा चेतना, आशय अंश विशुद्धि। tattracter artiడుకుండుదుడుకుడు: १ पण्डित जयचन्दजी, और पंडित हेमराजजीने भी समयसारको भापाटीका की है। पंडित जयचन्दजीही टीका सबझे विस्तृत और बोषप्रद कही जाती है। शेमुपीधिषणा प्राना, मनीषा श्रीस्खयाशयः ॥ ११ ॥
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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