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________________ जैनग्रन्थरताकरे kutekattitekat.k-kakakakikat.kutteketaketnt-totrkatrkot.ki चली थी, कि बनारसीदास किसीको सलाम नहीं करते हैं। कहते हैं कि, उससमय जब उनसे सलाम करनेके लिये कहा गया था, तब उन्हों ने यह कवित्त गढ़कर कहा था जंगतके मानी जीव, द्वै रहयो गुमानी ऐसो, आरव असुर दुखदानी महा भीम है। ताको परिताप खंडिवेको परगट भयो, धर्मको धरैया कर्म रोगको हकीम है । जाके परभाव आगे भागे परभाव सब, नागर नवल सुखसागरकी सीम है। संवरको रूप धरै साधै शिवराह ऐलो, शानी पातशाह ताको मेरी तसलीम है। ३ एक बार वनारसीदासजी किसी सड़कपर शुष्कभूमि देखभी कर पेशाव करने लगे, यह देखकर एक शाही सिपाहीने जो तत्काल ही भरती हुआ था, और जो कविवरको पहिचानता नहीं था, पासमें आकर इन्हें पकड़ लिया और दो चार चपत ( तमाचे ) जड़ दिये । कविवरने तमाचे सह लिये, चूं तक नहीं । किया और चलते बने। दूसरे दिन शाहीदरवारमें कार्यक्शात् देवयोगसे वही सिपाही उस समय हाजिर किया गया, जब कविवर बादशाह के निकट ही बैठे हुए थे । उन्हें देखकर बेचारे सिपाॐ हीके प्राण सूख गये । वह समझा कि, अब मेरी मृत्यु आ पहुँची है, तव ही मैंने कल इस दरबारीसे खडे बैठे शत्रुता कर ली है । आज इसीने शिकायत करके मुझे उपस्थित कराया है। इन विचारों १ यह कवित्त "नाटक समयसार" में भी है। htankitrintxtretatitutet-trkat.kriankutkukat.krkut.ttectitutetakitrkut.tituttarkutranet.
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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