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________________ ni teretanetes tetor tenter for tintatute territoriteter Antrekotustentwintimate १०० कविवरवनारसीदासः । fotukuttkukkkkkkkkkkakaituttarkutta kuttituttituttitit.katukkutt.kottituti से वह थर २ कांपने लगा। वनारसी उसके मनका भाव समझ गये। सिपाही जिसकार्यके लिये बुलाया गया था, जब उसकी * आज्ञा दे दी गई, तब पीछेसे कविवरने वादशाहसे उसकी मिफारिश की कि, हुजूर ! यह सिपाही बहुकुटुम्बी और अतिदायदीन है, यदि सरकारसे इसका कुछ वेतन बढ़ा दिया जावे, तो वे चारेका निर्वाह होने लगेगा। मैं जानता हूं, यह धानतदार नौकर है। कविवरके कहने पर उसी समय उसकी वेतन यदि कर दी गई। इस घटनासे सिपाही चकित स्तंभित हो गया। उसके * हृदयमें कविवर के लिये 'धन्य! धन्य!' शब्दोंकी प्रतिप्यनि बारम्बार । उठने लगी। वह उन्हें मनुष्य नहीं किन्तु देवरूपमें समझने लगा, और उस दिनसे नित्य प्रातःकाल उनके द्वारपर जाके जब नमस्कार कर आता, तब अपनी नौकरीपर जाता था । Patuk-krkukutt.titkuttakitutt.kutakuti kokakutatukitatutattattatokottotokutitutituttika ___४ आगरेमें एक बार "बाया शीतलदासजी नामके कोई सन्यासी आये हुए थे । लोगोंमें उनकी शान्तिता और क्षमाके विषयमें नाना प्रकार अतिशयोक्तियां प्रचलित हो रही थी, जिन्हें सुनकर कविवर उनकी परीक्षा करनेको प्रस्तुत हो गये । एफ. दिन प्रभातकालमें सन्यासीजीके पास गये, और बैठके भोली २ बातें करने लगे। बातोंका सिलसिला टूटने पर पूछने लगे, महाराज! आपका नाम क्या है ? वावाजी बोले, लोग मुझे 'शीतलदास' कहा करते हैं । कुछ देर पीछे यहां वहांकी वार्ता करके फिर पूछने लगे, कृपानिधान! मैं भूल गया, आपका नाम ! उत्तर मिला, शीतलदास । एक दो बातें करनेके पीछे ही फिर पूछ बैठे, महाशय! क्षमा कीजिये, मैं फिर भूल गया, आपका नाम ? इस प्रकार जब तक आप वहां बैठे रहे, फिर २
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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