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________________ Hinter tertentu tertentu tertentoretrtutakutan tenta tertutututututstatentatit ९८ कविवरवनारसीदासः। Xnx.xx..x kuktakeRAT जिनेन्द्रदेवके अतिरिक्त किसीके भी आगे मस्तक नन नहीं करूंगा । जब यह बात फैलते २ वादशाहके कानोंतक पहुंची, तब वे आश्चर्ययुक्त हुए परन्तु क्रोधयुक्त नहीं हुए। वे कविवरके स्वभावसे और धर्मश्रद्धासे भलीभांति परिचित थे, परन्तु उस श्रद्धाकी सीमा यहां तक पहुंच गई है, यह वे नहीं जानते थे, इसीसे विस्मित हुए । इस प्रतिज्ञाकी परीक्षा करनेके रूपमें उस समय बादशाहको एक मसखरी सूझी । आप एक ऐसे स्थानमें बैठे जिसका द्वार बहुत छोटा था, और जिसमें बिना सिर नीचा किये हुए कोई प्रवेश नहीं कर सक्ता था। पश्चात् कविवरको एक सेवकके द्वारा बुला भेजा । कविवर द्वारपर आते ही ठिठक गये, और हुजूरकी चालाकी समझके चटसे बैठ गये । पश्चात् शीघ्र ही द्वारमें पहिले पैर डालके प्रवेश कर गये । इस क्रियासे उन्हें मस्तक नम्र न करना पड़ा । बादशाह उनकी इस बुद्धिमानी से बहुत ॐ प्रसन्न हुए, और हँसकर बोले, कविराज ! क्या चाहते हो ? इस समय जो मांगो मिल सक्ता है, कवियरने तीन वार वचनबद्ध करके कहा, जहाँपनाह ! यह चाहता हूं कि, आजके पश्चात् फिर कभी . दरवारमें स्मरण न किया जाऊ ! इस विचित्र याचनासे वादशाह तथा अन्य समस्त दरबारी जो उस समय उपस्थित थे, चकित तथा स्तंभित हो रहे । वादशाह इस वचनके हार देनेसे बहुत दुःखी हुए, और उदास होके बोले, कविवर! आपने अच्छा नहीं किया । इतना कहके अन्तःपुरमें चले गये, और कई दिनतक दरबारमें नहीं आये । कविवर अपने आत्मध्यानमें लवलीन रहने लगे। २ जहांगीरके दरवारमें भी इससे पहिले एक वार और यह बात EPTEMPPS totketitututtitutetrkutstatesakakakistratitutitutitutetitik.x.kr Xutmethk.tuote X
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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