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________________ ६४ . ज्ञानानन्द रत्नाकर।. .. यासे पद शरणा लिया, नाथूराम जिन भक्त ॥१३॥ जिन दर्शन लखि संस्कृत, भाषा किया बनाय ॥ भव्य जीव नित उर धरो, यह भव भव सुखदाय ॥१४॥ . २४ चौबीस जिनेंद्रकी स्तुति गौरीमें ॥१॥ . : शरण निज राखी नाभिके नन्द ॥ (टेक) सुर तरु क्षीण भये लखि पुरजन दुःखी भये मतिमंद ॥ नाभि नृपति युत तुम तट आये दर्शत पायानन्द ॥१॥ ग्राम धाम रचना हरि कीनी । सुनि आदेश सुछंद ॥ निज मुख प्रभु षट कर्मवताये । उदर भरनको धंद ॥२॥ आदि तीर्थ वर्तावन हारे । प्रगटे आदि जिनेंद्र॥ . गरण धरादि कर पूजनीक प्रभु नवत चरण शतइंद्र ॥३॥ उपादेय पद पद्म तुम्हारे । त्रिजगति को सुख कंद ॥ नाथूराम जिन भक्त जगतका, चाहत भ्रमना बंद ॥१॥ अजित नाथ स्तुति ॥ २॥ . अजित मोहिं अजित अजित करो नाथः। ॥ . (टेक) क्सु अजीत जीते विधि तुमने । ज्ञान चक्र गहि हाथ ॥ 1. ध्यान कृपान पानगहि क्षणमें । मोह किया निरमाथ ॥ ॥ अर्द्ध चतुर्थ काल गत प्रगटे । धर्म तीर्थ के नाथ ॥ . धर्म पोत धरि बहु भंवितारे। पहुँचे शिव ले साथ ॥२॥ - गज लक्षण लखि उभय चरण को। नमो भाल पर हाथ ॥ उरगण पति सुतहीन दासपर । कृपा करो गुण गाथ॥३॥
SR No.010696
Book TitleGyanand Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Munshi
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1895
Total Pages105
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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