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________________ ॥अथ जगचिंतामणि चैत्यवंदन ॥ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं इच्छं। विधि-(एसा आदेश लेकर डाबा गोडा ऊंचा कर बैठके) जगचिंतामणि जगनाह जगगुरु जगरकखण । जगबंधव जगसथ्यवाह जगभाव विअक्खण ॥ अट्ठावयमंठविअरूव कम्मट्ट विणासण। चवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पडि हयसासण ॥१॥ कम्ममूमिहिं कम्म भूमिहि। पढम संघयणि उक्कोसंय अत्तरिसय जिणवराण विहरतलब्भइ ॥नवकोडिहिं केवलीण कोड सहस्स नव साहु, गम्मइ । संपइ जिणवर वीस मुणि बिहुँकोडिहिं वरनाण समणह कोडिसहस्स दुअ थुणिजिअनिच्च विहाणि ॥२॥ जयउ सामी जयउ सामी रिसह सत्तुंजि, उर्जित पहुने भिजिण ॥ जय वीर सच्चरिमंडण, भरूअच्छहिं मुणिसुन्वय मुहरिपास दुह दुरिअखंडण, अवर विदेहितिथ्थयरा ॥ चिहुंदिसि विदिसि जिंकेत्रि तीआणागयसंपइअ ॥ वंदु जिण सव्वेवि ॥३॥ सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पन्न अठकोडीओ। बत्तीसयबासिआई, तिअलोए चेइए वंदे ॥४॥ पनरसकोडिसयाई, कोडिबायाल लक्ख अडवन्ना।। छत्तीस सहस्स आसियाई, सासयबिंबाई पणमामि ॥५॥
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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