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________________ ܕܪ अष्ट द्रव्य* आदिसे अग्र पूजा करके आरती मङ्गदीक उतारकर पीछे चतुर्गति निवारणरूप चावलका स्वस्तिक (साथिया ) 'करके ऊपर सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, और सम्यकूंचारित्रं रूप तीन पुंज (हगली) बनाकर ऊपर चन्द्राकार सिद्ध शिला बनाकर सिद्धरूप ढगली उसके ऊपर करके फल चढ़ाना चाहिये । वचन, तीसरी " निस्सहिः " कहके भात्र पूजा करनी यानी मन, और कायारूप तीन मासमणा करना । ॥ अथ खमासमण ॥ इच्छामि खमासमणो बंदिऊं जावणिज्जाए निसीहि आए मध्धरण वंदामि ॥ (विधि) यह मन, वचन, कायारूप तीनवार खमासंपणा देकर स्त्रीको भगवान्के बांई (डावी) तरफ पुरुषको दाहिनी (जीमणी) बाजु डात्रा गोडा ऊंचा कर बैटके विधिपूर्वक चैत्यवंदन करना । अर्थ - हे क्षमाश्रमण ! मैं पाप व्यापारका निषेध करके शरीरकी शक्तिसे आपके चरण कमलोंमें इच्छा करके नमस्कार करता - मस्त कसे वंदना करता हूँ । विधि - यह पाठ वीतराग देव और गुरु महाराजके सम्मुख खड़े हो दोनों हाथ जोड़ पंचांग ( दो हाथ, दो घुटने और पांचवां . मस्तक ) जमीन से लगाकर वंदना करनेका है । *नवण (जल) विलेपन, कुसुम, (पुष्प) धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, और फल, यह अष्टद्रव्य हैं ।
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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