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________________ जिनमंदिरमेंद्रव्य और भावपूजा करनेकी संक्षेप विधि श्री जिनमन्दिरमें जाकर द्वारमें प्रवेश करके पहले "निम्सहिः (सांसारिक सावध कार्य छोड़ने रूप ) कहना चाहिये। मन्दिरजीका काम (कान) व कचग जाला वगैग्हकी सम्हाल (स्वयम् करने योग्य हो सो आप करे और अन्यम काने योग्य हो सो अन्यसे करावे) दूसरी "निम्सहिः" करके मंदिर कार्य छोड़कर तीन प्रदक्षिणा भगवान्के दाहिनी जीमणी तरफसे यानी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रकी आराधनारूर दनी चाहिये । ____ यदि प्रमुकी अङ्गपूजा करनी हो तो शरीर शुद्धि (शुद्ध छने हुवे जलसे सनान) तथा शुद्ध (उमदा) वस्त्र पहनकर नुस्कोश बांधके पीछे तीन प्रदक्षिणा उपरोक्त विधिपूर्वक देका जिनमन्दिरमें कचरा साफ़कर मयूर पिच्छसे प्रमुकी अङ्गप्रमार्जना करके जीवनंतुकी रक्षा । करनी चाहिये। . भगवान्की डावी बाजू धूप खेवना, तथा दाहिनी बाजू घृतका फानसमें दीपक करना चाहिये। 'पंचामृत' से प्रक्षालकर शुद्ध जलसे स्नान कराके तीन अङ्गलूहणा करके केसर-चंदन बराससे नव अङ्गपूजा'x करनी पीछे शुद्ध पंचवर्णके पुष्प चढ़ाकर हार और मुकुट कुंडल आभूपण अङ्गरचनादि । धारण कराना चाहिये। * दूध, दधि, घृत, शक्कर, जल, पंचामृत कहा जाता है। ४ २ चरण, २ घूटन, २ पोंचे, २ खंवे, (कंधे) मस्तक, ललाट, . कंठ, हृदय,, और नाभि, यह नौ अंग गिने जाते हैं।
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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