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________________ (२०) गुरुके स्थापना चार्य हों तो उनके सामने इस पाठके पढ़नकी आवश्यकता नहीं) पीछे “ इच्छामि खमा समणो" देकर “इरिया वही" "तस्स उत्तरी" "अन्नध्य ऊससिएणं" कहकर एक ' लोगस्स" अथवा चार " नवकारका कायोत्सर्ग करना चाहिए । काउसग्ग पूर्ण होनेपर " नमो अरिहंताणं" कहकर काउसग्ग पारे और प्रकट लोगास कह कर " इच्छामि खमासमणो " कह कर. " इच्छा कारण संदिसह भगवन् सामायिक मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं" इस प्रकार कह कर पचास बोल सहित झुके हुए. बैठकर मुहपत्तिकी पडिलेहना ( प्रतिलेखना) करनी चाहिए। फिर खमासमणा पूर्वक “ इच्छा कारेण संदिसह भगवन् सामा-- यिक संदिसाहुं इच्छं" कहे । फिर * " इञ्छमि खमा० इच्छा.. भगवन् सामायिक ठाऊं ? इच्छं " कहकर खड़े हो दोनों हाथको जोड़कर एक नवकार पढ़कर गुरुके सामने इच्छाकारि भगवन् पसायकरी सामायिक दंडक उच्चरावोजी ऐसे कहना चाहिए। फिर गुरु न हो तो अपनेसे जो गुणोंमें बड़ा हो, या निसने पहिलेसे सामायिक ली हुई हो उनसे 'करेमिभंते' का पाठ उच्चारण करनेके लिए प्रार्थना करनी चाहिए, यदि अपने सिवाय और कोई न हो तो उपरोक्त रीत्यानुसार "करेमिमते" का * जहां " इच्छामि०" लिखा है वहां-" इच्छामि खमासमणो वन्दिडं जावाणजाए निसीहिआए मथ्यएण वंदामि " यह खमासमणा समझना चाहिए । और जहां " इच्छा०" लिखा हो वहां " इच्छाकारेण संदिसह भगवन् " ऐसे समझना चाहिए। पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के आप अनन्यतम शिष्य है एवं उनक द्वारा सम्पन्न आध्यात्मिक क्रान्ति में आपका अभूतपूर्व योगदान है। उनके मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियों प्रापकी सूझ-बूझ एवं । सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं।
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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