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________________ ( १९ ) ॥ अथसामायिक | संसार जीव अनादिकालसे भवभ्रम में पड़े रहने के कारण प्रायः 'अधिकांश मोक्षप्राप्तिके साधनभूत शुद्ध चारित्रको ग्रहण नहीं कर सकते, अथवा यों कहा जाय कि मनुष्योंका अधिक वर्ग कर्मचक्के वशीभूत होकर संयम धारण नहीं कर सकता; इस कारण परमोपकारी भगवानने मनुष्य मात्रको प्रतिदिन कमसे कम २ घड़ी (१८ मिनिट) "तक "सामायिक" करनेके लिये इस कारण फरमाया है कि, भव्य जीव सामायिकके समय साधुके समान हो जानेसे अपनी शुभ भावनाओंके द्वारा कर्मोकी निर्जरा करता हुआ अन्तमें अपनी आत्माका शुद्ध स्वरूप पहचान कर "शिव सुख" की प्राप्ति करे । सामायिक लेनेकी विधि | श्रावक श्राविकाओंको सामायिक लेनेसे पहले शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए। और अपने सामने एक ऊंचे आसनपर धार्मिक ग्रंथ या जमाला आदि रखकर जमीन को साफकर (जीव जन्तुओंको वरजको चरवलादिसें पूंजकर) जो पुस्तकादि रखे हैं, उनसे एक हाथ चार अंगुल दूर आसन ( बैठका) बिछाकर और चला, हपत्ति लेकर शान्त चित्तसे वैठकेर बाएं (डाचे ) हाथमें मुहपत्ति रखकर सीधे ( जीमने ) हाथको स्थापन किये हुए ग्रंथादिके सम्मुख उलटा रखके एक नवकार मंत्र पढ़ना चाहिए । बादमें ." पंचिदिअ संवरणो " की पाठउच्चारण करें । ( जो · 4t · १ बने वहा तक सामायिक खड़े २ लेना चाहिये । -२ ये संक्षेपमें दिये हुए नामोंके पाठ आगे दिये हुए पाठों जानने चाहिये |
SR No.010693
Book TitleChaityavandan Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1918
Total Pages35
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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