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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः । २३५ भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसको उस भागहार में मिलानेसे सौधर्म ईशान वर्ग सम्बन्धी असंयतगुणस्थानके भागहारका प्रमाण होता है । इस भागहारका पल्यमें भाग देने से जो लब्ध आवे उतना सौधर्म ईशान स्वर्गसम्बन्धी असंयत गुणस्थानवर्ती जीवोंका प्रमाण है 1 इसी तरह मिश्र और सासादनके भागहारका प्रमाण भी समझना चाहिये । सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गके असंयत मिश्र सासादनसम्बन्धी भागहारका प्रमाण बताते हैं । सोहम्मसाणहारमसंखेण य संखरुवसंगुणिदे | उवरि असंजद मिस्स सासणसम्माण अवहारा ।। ६३५ ॥ सौधर्मेशानहारमसंख्येन च संख्यरूपसंगुणिते । उपरि असंयतमिश्रकसासनसमीचामवहाराः ॥ ६३५ ।। अर्थ — सौधर्म ईशान स्वर्गके सासादन गुणस्थानमें जो भागहारका प्रमाण है उससे असंख्यातगुणा सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के असंयतगुणस्थान के भागहारका प्रमाण है । इससे असंख्यातगुणा मिश्र गुणस्थानके भागहारका प्रमाण है । तथा मिश्रके भागहारसे संख्यातगुणा सासादन गुणस्थानके भागहारका प्रमाण है । इस गुणितक्रमकी व्याप्तिको बताते हैं । सोहम्मादासारं जोइसिवणभवणतिरियपुढवीसु । अविरदमिस्से संखं संखासंखगुण सासणे देसे ॥ ६३६ ॥ सौधर्मादासहस्रारं ज्योतिषिवनभवन तिर्यक्पृथ्वीषु । अविरतमिश्रेऽसंख्यं संख्यासंख्यगुणं सासने देशे ॥ ६३६ ॥ । अर्थ — सौधर्म स्वर्गसे लेकर सहस्रार स्वर्गपर्यन्त, ज्योतिषी, व्यंतर, भवनवासी, तिर्यंच, सातों नरकपृथ्वी, इनके अविरत और मिश्र गुणस्थान में असंख्यातका गुणक्रम है । और सासादन गुणस्थान में संख्यातका तथा देशसंयम गुणस्थानमें असंख्यातका गुणक्रम समझना चाहिये । भावार्थ – सौधर्म ईशान स्वर्गके आगे सानत्कुमार माहेन्द्रके असंयत मिश्र सासादन गुणस्थानके भागहारोंका प्रमाण बता चुके हैं । इसमें सासादन गुणस्थानके भागहारका जो प्रमाण है उससे असंख्यातगुणा ब्रह्म ब्रह्मोत्तरके असंयत गुणस्थानका भागहार है । इससे असंख्यातगुणा मिश्रका भागहार और मिश्र के भागहारसे संख्यांतगुणा सासाद - नका भागहार है । ब्रह्म ब्रह्मोत्तरसम्बधी सासादन के भागहार से असंख्यातगुणा लांव कापि - ष्ठके असंयत गुणस्थान सम्बन्धी भागहारका प्रमाण है । और इससे असंख्यातगुणा मिश्रका भागहार और मिश्र भागहारसे संख्यातगुणा सासादनका भागहार है । इसी क्रम के अनुसार शुक्र महाशुक्रसे लेकर सातमी पृथ्वीतकके असंयत मिश्र सासादनसम्बन्धी भाग १ यहां पर संख्यातकी सहनानी चारका अंक है । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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