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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः। २१३ पका व्यवहार सिद्ध होता है । भावार्थ-अमुक पदार्थ अमुक पदार्थके आगे है और अमुक पदार्थ पीछे है । अथवा अमुक पदार्थ अमुक पदार्थके समीप है और अमुक पदार्थसे दूर है इस व्यवहारको सिद्ध करनेवाला प्रदेशविभाग ही है । व्यवहारकालका निरूपण करते हैं । आवलिअसंखसमया संखेजावलिसमूहमुस्सासो। सत्तुस्सासा थोवो सत्तत्थोवा लवो भणियो । ५७३ ॥ आवलिरसंख्यसमया संख्येयावलिसमूह उच्छासः । सप्तोच्छासः स्तोकः सप्तस्तोको लवो भणितः ॥ ५७३ ॥ अर्थ-असंख्यातसमयकी एक आवली होती है । संख्यात आवलीका एक उच्छास होता है । सात उच्छ्रासका एक स्तोक होता है । सात स्तोकका एक लव होता है । उच्छासका खरूप क्षेपक गाथाद्वारा बताते हैं। अड्डस्स अणलस्स य णिरुवहदस्स य हवेज जीवस्स । उस्सासाणिस्सासो एगो पाणोत्ति आहीदो ॥१॥ आढ्यस्यानलसस्य च निरुपहतस्य च भवेत् जीवस्य । उच्छासनिःश्वास एकः प्राण इति आख्यातः॥१॥ अर्थ—सुखी, आलस्यरहित, रोग पराधीनता चिन्ता आदिसे रहित जीवके संख्यातआवलीके समूहरूप एक श्वासोच्छ्रास प्राण होता है । भावार्थ-दुःखी आदि जीवके संख्यात आवलीप्रमाण कालके पहले भी श्वासोच्छ्रास होजाता है । इसलिये यहां पर सुखी आदि विशेषणोंसे युक्त जीवका ग्रहण किया है। अट्टत्तीसद्धलवा नाली वेनालिया मुहुत्तं तु । एगसमयेण हीणं भिण्णमुहुत्तं तदो सेसं ॥ ५७४ ॥ अष्टत्रिंशदर्धलवा नाली द्विनालिको मुहूर्तस्तु । एकसमयेन हीनो भिन्नमुहूर्तस्ततः शेषः ॥ ५७४ ॥ अर्थ-साढ़े अड़तीस लवकी एक नाली (घड़ी) होती है । दो घडीका एक मुहूर्त होता है । इसमें एक समय कम करनेसे भिन्नमुहूर्त अथवा अन्तर्मुहूर्त होता है । तथा इसके आगे दो तीन चार आदि समय कम करनेसे अन्तर्मुहूर्तके ही भेद होते हैं । जवन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तका प्रमाण क्षेपक गाथाके द्वारा बताते हैं । ससमयमावलि अवरं समऊणमुहत्तयं तु उक्कस्सं । मज्झासंखवियप्पं वियाण अंतोमुहुत्तमिणं ॥१॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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