SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । हीन हैं । भावार्थ-६५५३६ से गुणित प्रतरामुलका भाग जगत्प्रतरमें देनेसे जो लब्ध आवे उतना ही ज्योतिषी जीवोंका प्रमाण है । इसमें क्रमसे असंख्यातगुणा २ कम करनेसे आगे २ की राशिका प्रमाण निकलता है। इगिपुरिसे बत्तीसं देवी तज्जोगभजिददेवोधे । सगगुणगारेण गुणे पुरुषा महिला य देवेसु ॥ २७७ ॥ एकपुरुषे द्वात्रिंशद्देव्यः तद्योगभक्तदेवौघे । स्वकगुणकारेण गुणे पुरुषा महिलाश्च देवेषु ॥ २७७ ॥ अर्थ-देवगतिमें एक देवकी कमसे कम बत्तीस देवियां होती हैं । इसलिये देव और देवियोंके जोड़रूप तेतीसका समस्त देवराशिमें भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसका अपने २ गुणाकारके साथ गुणा करनेसे देव और देवियोंका प्रमाण निकलता है । भावार्थ-समस्त देवराशिमें तेतीसका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसका एकके साथ गुणा करनेसे देवोंका और बत्तीसके साथ गुणा करनेसे देवियोंका प्रमाण निकलता है । यद्यपि इन्द्रादिकोंकी देवियोंका प्रमाण अधिक है; तथापि प्रकीर्णक देवोंकी अपेक्षा इन्द्रादिका प्रमाण अत्यल्प है, अतः उनकी यहां पर विवक्षा नहीं की है। . देवेहिं सादिरेया पुरिसा देवीहिं साहिया इत्थी। तेहिं विहीण सवेदो रासी संढाण परिमाणं ॥ २७८ ॥ देवैः सातिरकाः पुरुषा देवीभिः साधिकाः स्त्रियः। तैविहीनः सवेदो राशिः षण्ढानां परिमाणम् ॥ २७८ ॥ अर्थ-देवोंसे कुछ अधिक, मनुष्य और तिर्यग्गतिसम्बन्धी पुंवेदवालोंका प्रमाण है । और देवियोंसे कुछ अधिक मनुष्य तथा तिर्यग्गति सम्बन्धी स्त्रीवेदवालोंका प्रमाण है । सवेद राशिमेंसे पुंवेद तथा स्त्रीवेदका प्रमाण घटानेसे जो शेष रहे वह नपुंसकोंका प्रमाण है । गम्भणपुइत्थिसण्णी सम्मुच्छणसण्णिपुण्णगा इदरा। कुरुजा असण्णिगब्भजणपुइत्थीवाणजोइसिया ॥ २७९ ॥ थोवा तिसु संखगुणा तत्तो आवलिअसंखभागगुणा । पल्लासंखेजगुणा तत्तो सवत्थ संखगुणा ।। २८० ॥ गर्भनपुस्त्रीसंज्ञिनः सम्मूर्छनसंज्ञिपूर्णका इतरे । कुरुजा असंज्ञिगर्भजनपुस्त्रीवानज्योतिष्काः ॥ २७९ ॥ स्तोकाः त्रिषु संख्यगुणाः तत आवल्यसंख्यभागगुणाः । पल्यासंख्येयगुणाः ततः सर्वत्र संख्यगुणाः ॥ २८० ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy