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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोम्मटसार । छादयति स्वकं दोषे नयतः छादयति परमपि दोषेण । छादनशीला यस्मात् तस्मात् सा वर्णिता स्त्री ॥ २७३ ॥ अर्थ – जो मिथ्यादर्शन अज्ञान असंयम आदि दोषोंसे अपनेको आच्छादित करै, और मृदु भाषण तिरछी चितवन आदि व्यापार से जो दूसरे पुरुषोंको भी हिंसा अब्रह्म आदि दोषोंसे आच्छादित करै, उसको अच्छादन - स्वभावयुक्त होनेसे स्त्री कहते हैं । भावार्थ - यद्यपि बहुत सी स्त्रियां अपनेको तथा दूसरोंको दोषोंसे आच्छादित नहीं भी करती हैं तब भी बहुलता की अपेक्षा यह निरुक्तिसिद्ध लक्षण किया है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वित्थी व पुमं णउंसओ उहयलिङ्गविदिरित्तो । इट्ठावग्गस माणगवेद णगरुओ कलुसचित्तो ॥ २७४ ॥ नैव स्त्री नैव पुमान् नपुंसक उभयलिङ्गव्यतिरिक्तः । इष्टापाकाग्निसमानकवेदनागुरुकः कलुषचित्तः ॥ २७४ ॥ अर्थ — जो न स्त्री हो और न पुरुष हो ऐसे दोंनों ही लिङ्गोंसे रहित जीवको नपुंसक कहते हैं । इसके अवा ( भट्टा ) में पकती हुई ईंटकी अनिके समान तीव्र कषाय होती है । अत एव इसका चित्त प्रतिसमय कलुषित रहता 1 है 1 वेदरहित जीवोंको बताते हैं । वेदमार्गणा में पांच गाथाओं द्वारा जीवसंख्याका वर्णन करते हैं । १०७ तिणकारिसिटुपागग्गिसरिसपरिणामवेदणुम्मुक्का | अवयवेदा जीवा सगसंभवणंतवरसोक्खा ॥ २७५ ॥ तृणकारीषेष्टपाकाग्निसदृशपरिणामवेदनोन्मुक्ताः । अपगतवेदा जीवाः स्वकसम्भवानन्तवर सौख्याः ॥ २७५ ॥ अर्थ – तृणकी अनि कारीष अनि इष्टपाक अनि ( अवाकी अग्नि ) के समान वेद के परिणामोंसे रहित जीवोंको अपगतवेद कहते हैं । ये जीव अपनी आत्मा से ही उत्पन्न होनेवाले अनन्त और सर्वोत्कृष्ट सुखको भोगते हैं । For Private And Personal जोइसियवाणजोणिणितिरिक्खपुरुसा य सण्णिणो जीवा । तत्तेउपम्मलेस्सा संखगुणूणा कमेणेदे ॥ २७६ ॥ ज्योतिष्कवानयोनिनीतिर्यक्पुरुषाश्च संज्ञिनो जीवाः । तत्तेजःपद्मलेश्याः संख्यगुणोनाः क्रमेणैते ॥ २७६ ॥ अर्थ – ज्योतिषी, व्यन्तर, योनिमती तिर्यच, संज्ञी तिर्यंच, संज्ञी तिर्यच तेजोलेश्या - वाले, तथा संज्ञीतिर्यच पद्मलेश्यावाले जीव क्रमसे उत्तरोत्तर संख्यातगुणे संख्यातगुणे १ स्वं परं वा दोषैः स्त्रीणाति आच्छादयति इति स्त्रीः । २ न स्त्री न पुमानिति नपुंसकः ।
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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