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________________ वीरस्तुतिः। द्विज ब्राह्मण-महाव्रती, नियमयुक्त, संयमपालक, इन्द्रियविजेता, सम. तोलनवृत्तिवाला, आत्मा अने मनना विजेता, क्षमावान् , अने सहिष्णु छे ते द्विज ब्राह्मण छ। मुनिव्राह्मण--जे लुखो सुको आहार लईने पण सन्तोष माने छे, मात्र दिवसेज भोजन करे छे, हमेशां वनमा वसे छे, दिनरात आत्मध्यानमा मग्न रहे छ, योगाभ्यासनी साधना करे छे, ते मुनिब्राह्मण छ । नृपब्राह्मण---- जे हाथी, घोडा पर स्वारी करवानी इच्छा राखे छे, रण भूमिमां जई युद्ध करे छ, खदेशने गुलामीनी जंजीरथी मुक्त करी तेने खतंत्र वनावे छे, अन्यायनो नाश करवाने जे प्रयत्नशील छे, न्यायथी शासन चलावे छे, साम्यवादनी स्थितिपालकतामा शूरवीर छे, कायरतानो अशमात्र जेनामा नथी, ते नृपब्राह्मण होय छ। वैश्य ब्राह्मण-जे खेती करे छे, न्यायनीतिथी वेपार करे छ, पशुर्नु पालन करे छे, हमेशा न्यायनो पक्ष ल्ये छे, जनसमाजनी सेवामा तत्पर रहे छ, जे दान देवा अर्थे सर्व प्रकारनी धातुओनो आर्यवृत्तिथी संग्रह करवानुं जाणे छे, ते वैश्य ब्राह्मणछे। शूद्र ब्राह्मण-जे लाख, तेमज तेलनो वेपार करे छे, व्याज साय छ, मास मदिरा वेचे छे, ते शूद्र ब्राह्मण छ । विलाव ब्राह्मण-जेने भक्ष्याभक्ष्यनुं जान नथी, जे गावा वजाववान कार्य करे छे, परस्त्रीगामी छे, ते ब्राह्मण विलाव प्रकृतिनो छ। म्लेच्छ ब्राह्मणवाव-कुवा-तळावमाथी जे अणगल पाणीनो उपयोग करे छे, परना दुखोनो जे विचार करतो नथी, ते म्लेच्छ ब्राह्मण छ । चाण्डाल ब्राह्मण-जे जंगलमां आग लगाडीने खेती करे छे, जे रेक जीवने मारी नाखे छे, अहिंमा धर्मथी अजात छे, ते चाडाल ब्राह्मण छ । खर ब्राह्मण-शास्त्र नुं अध्ययन करतां छतां अध्यात्म-यटर्म करवानुं जे जाणता नथी, प्रेतभोजन करे छे ते खर ब्राह्मण छ । अयोग्य ब्राह्मण-जे अन्यना दोपो प्रगट करे छ, अने पोताना पापोने छुपावे छे, ते ब्राह्मण धर्म माटे अयोग्य छ, तेनुं जीवन कुतरानी पूछडी माफक व्यर्थ छ।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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