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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ३१ वनारां कर्मोनो अन्त तेओए कइ रीते कर्यो ? जे मार्ग- अनुसरण तेओए कयु, ते मार्गनो आश्रय जो अमे लइए तो प्रभु साथे अमारूं साम्य केवी रीते थई शके ? नरकना दु खो साभळीने जेमनुं मन अत्यन्त उदास थई गयुं छे, त्याग अने वैराग्यथी जेओ अलंकृत वनवा इच्छे छे, ते श्रमणादि मने पूछे छे के "ससार रूप समुद्रथी पार उतारनार धर्मनुं प्रतिपादन कोणे करेलुं छे ?" संसारमा विचरता घणा श्रमणो आ प्रश्न पूछशे, ते श्रमण-साधु छे, परिग्रह ग्रन्थीने कापनारा छे, निष्काम तप करे छे, तेओ पोतानी माफक बीजाओना सुख दुःख समजे छ, तेथी ते खेदज्ञ पण होय छ । ब्राह्मण तदुपरात मने कोई ब्राह्मणो पण पूछशे, ब्रह्मचर्य- पालन करता होवाथी, सिद्ध-परमात्माना ज्ञान-मार्गनुं श्रवण करता होवाथी, अन्य-आत्माओने पोताना समान जाणता होवाथी, ते ब्राह्मण नामथी प्रसिद्ध छ। वृद्ध पुरुषोए वतावेला ब्राह्मणना लक्षणो जेनामा सहनशीलता, निरासक्ति, अहिंसकता, उदारता, सत्य, शौच, पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत, विद्या विनयसम्पन्नता होय छे, तेमा ब्राह्मण- पहेलं लक्षण छे । जे शान्त होय छे, इन्द्रियोनु दमन करे छ, पवित्र अने दृढ ब्रह्मचारी छ, वधा प्राणिओना कल्याण-कार्योमा जे हमेशा तत्पर रहे छे, जे क्रोध करता नथी, ते ब्राह्मण- बीजं लक्षण छ । जे निर्लोमी छे, निरभिमानी छे, सर्वथा पापना त्यागी छे, राग-द्वेप अने मोहजाळथी मुक्त छे, ते त्रीजुं लक्षण छ । मार्गमां, जगलमा, अथवा कोईना घरमा पर वस्तुने जोईने चोरी करवानी इच्छा सरखी जेमने नथी थती, तेमज चोरी करीने पर वस्तुनुं ग्रहण जेओ करता नथी, ते ब्राह्मण- चोथु लक्षण छ । जे मास, मदिरा, मधुनुं क्यारे पण सेवन करता नथी, गुलर-अजीर विगेरे अभक्ष्यफळ तथा गळेला-सळेला फळ खाता नथी, तथा रात्रिभोजनना त्यागी होय छे, ते पाचमुं लक्षण छ । कोईए १० प्रकारना ब्राह्मण कहेला छे देव, द्विज, मुनि, राजा, वैश्य, शूद्र, विलाव, गधा, म्लेच्छ, चाण्डाल ए मेदोथी ब्राह्मण दश प्रकारना होई शके छे. देव ब्राह्मण-जे एक वखत भोजन करे छे; मास, मदिरानुं सेवन करता नथी, तत्वज्ञानना पारने पहोंची गया छे, ते देव ब्राह्मण छ।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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