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________________ २२६ वीरस्तुतिः। .वे उपवासनु फळ प्राप्त करे छे, एम समजवू । “रात्रिभोजन करनारने नीचे लख्या मुजव सामग्री प्राप्त थाय छ, रोग शोक अने कलह करनारी, राक्षसी माफक भय उपजावे तेवी स्त्री मळे छे, तेमज महापापथी पेदा थयेल अन्त. राय दु.ख देनारी कन्या प्राप्त थाय छे, व्यसनी तेमज काळा सापनी माफक विहामणा पुत्र थाय छे, घरमां दरिद्रता तो सदा रह्याज करे छे ।" नीच जातिमा जन्म धरी नीच कर्मो करवा पडे छे, शील-निर्लोभपणुं-समभाव-आदि गुणो नो अभाव रहे छे, बीजार्नु अनिष्ट करनार दुर्जननी माफक ते केटलीए जातनी व्याविधी घेराएलो रहे छे, सर्व दोषोना समूहथी पीडायेलो आप्रमाणे अनेक दोषोनी उत्पत्ति थई जाय छ । रात्रि भोजननो त्याग करनारने नीचे मुजब फळनी प्राप्ति थाय है, . कमळपत्रसमान आखोवाळी, प्रियवचन बोलनारी, लक्ष्मीसमान सुन्दर स्त्री प्राप्त थाय, तेमज विद्या कलामा निपुण पुण्यनी पंक्ति माफक सुन्दर शरीर अने निर्मळ चरित्रवाली तेने कन्या प्राप्त थाय छ।" कोई पण आतना । व्यसनथी रहित तेमन चन्द्रमाना जेवा पवित्र कर्म वाळा पुत्र : मळे छे, : इन्द्रना भवननी माफक उजासवाळु मणिरत्नोथी भरपूर सुशोभित मकान । प्राप्त थाय छ, । स्थायी वैभव प्राप्त थाय छे, मनोवाछित फळ मळे छे, नीरोगी सुन्दर शरीरनी प्राप्ति थाय छे, ए प्रकारे वधी रीतथी सुख प्राप्त थाय छे।" "ते उपरान्त ज्ञान-दर्शन-चरित्रनी पण सम्पत्तिने पामे छे, आखा विष्वनो पूजनीय पति बने छे, रात्रिभोजनथी दूर रहेनार तेमज त्यागीओने आ समृद्धि प्राप्त थाय छे ।" अने-"रात्रे आहार करवाथी भंडणी-भीलडी-वादरीमाछली-गळामा रसोडी(गिलड)वाली-रोहिणी-कुत्तरी-शोक-क्लेशवाळा तेम ज खोड खापणवाळा पुत्र जणनारी विधवा धनहीना एवी एवी अनेक कष्टकर योनि प्राप्त थाय ।" "तेओ (रात्रि भोजननो त्याग करनारा) वन्धुगणमा पूजनीय मनाय छे, पुत्रो तेमनी सेवा करे छे,लज्जा अने सयमरूपी आभूपणयो युक्त रहे छे, शरीरे नीरोगी होय छे, लक्ष्मी जेवी अने बुद्धिमती तथा शरमाळ स्त्री मळे छे, तेमनो स्वभाव पण धर्मात्मा माफक होय छे, दिवसे भोजन करनारने आवा सुखनी प्राप्ति थाय छे।"
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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