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________________ २२४ - वीरस्तुतिः । .. पण. नियमितभोजी तेमज भोजन संयमी, वनवू जोइए ।" "सत्पुरुषो वे घडी दिवस रहे त्यारे वाळु करे छे अने वे घडी दिवस चढ्यां पहेला. गमे ते जातनो आहार करे नहिं, ते रात्रि भोजनना दोपथी वची जाय छे।" "जेणे दिवसे भोजन करी लेवानो रिवाज पाज्यो होय पण, प्रतिज्ञा न करी होय तेने तेनुं निवृत्तिरूप पुण्य मळतुं नथी, कारण कोइए रकमतो आपी पण व्याजनु नाम पाड्यु नथी, तेथी ते वसुल करती वखते व्याजनो हकदार नथी, कारणके दुनियादारोमा पण वोलनुं मूल्य छे।" "जे माणस दिवसमा भोजन करवानुं मुकीने रातमाज खावू पसद करे छे, ते अज्ञ माणस चळकता एवा माणिक्यरत्नने छोडी दईने काचना टुकडाने पसद करनार जेवो खरे खर जडवुद्धि छे, " "दिवस होवा छतां कल्याणप्राप्ति इच्छनार मनुष्य जे रात्रि भोजन करे छे, ते खरेखर एक सारी रीते खेडेला खेतरने छोडी दईने एक खारी रेती वाळी लवण भूमिमा धान्य वाववा चाहे छे, एम समजबुं ।" "राने भोजन करवाथी घुवड, कागडा, विलाडा, गीध, राक्षस, सूवर, साप, वींछी, घो आदि योनिओ मनुष्यने प्राप्त थाय छ, ।" "जे व्यक्ति रात्रि भोजननो त्याग करे छे ते धन्यवादने पात्र छे, केमके ते पोतानी अर्घा जिंदगी उपवासमाज गाळे छे।" “रात्रि भोजनना त्यागमा जे जे गुण रहेला छे, ते विषयमा वधारे शुं विवेचन करवं, सर्वज्ञ होय तेज आ वावतमा वधू जाणी शके छ,” वळी अमितगति श्रावकाचार-मा पण आनो खूब निषेध करेल छ। ___ "जेमके-जे समये राक्षसो तेमज पिशाचो फरे छे, जे समये जन्तुओनो समूह वरावर जोई शकतो नथी, एटले अमुक वस्तुनी वंधी होवा छतां पण अजाण पणे खवाई जाय छे, कारणके ते वखते घोर अंघारु रहे थे।" "ते समये साधु महापुरुषोनुं आवq पण कठण छे, जेथी गुरुदेवनी सेवा किवा अतिथि सत्कार विल्कुल थई शकतो नथी तेमज सयमनो पण निरन्तर नाश थतो जाय छे, जीवोना भक्षण सुद्धा थई जाय छे।" . "जे वखते टानादिक शुभ कार्यने माटे वर्जित छे, जे समये लोकोनु जबुं आवळू वंध थई जाय छे, ते समय एकान्त दोषोनुं घर छे, ज्यारे दिवसनो अभाव होय छे, एवा रात्रिना समयमा धर्मध्यानमां कुशल मनुष्य विल्कुल भोजन करी शकेज नहि।" "जे दुराशयथी जिन्हा इन्द्रियनी तृप्तिने माटे
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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