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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २२३ आमांना छट्ठा नियममा रात्रिभोजननो पण त्याग आवी जाय छे । अने अंधारामा आखोथी कंइ देखातुं नथी ते वखंते रात्रे उडनारा जीवडाओर्नु भोजनमा पंडवानुं संभवित छे, तेथी रात्रे कोण खाय पीए ? रात्रिभोजनना प्रत्यक्ष दोष "भोजनमां कीडी खवाई जाय तो बुद्धिनो नाश थाय छे, जू खवाई जाय तो जळोदर थई जाय छे, माखीथी वमन थई जाय छे, करोलिओ आवी जाय तो कोठ थाय छे । कांटो तेमज लाकडानो टुकडो आवी जाय तो गळामा पीडा करे छे, शाक भाजीमां वींछी आवी जायतो तेना डंखथी बहु पीडा थाय छे, गळामां वाळ अटकी जाय तो खर भंग थई जाय छे, रात्रि भोजनथी मावा अनेक प्रत्यक्ष दोषो थाय छे," । "राने वासणो साफ करती वखते कुंथुवा आदि घणा जीवडाओनो नाश थई जाय छे।" "राने प्राशुक वस्तुओ पण न खावी जोइए, कारणके मोदक, फळादिना जीवो राने देखी शकाता नथी।" वेदमां "वेदज्ञो कहे छे के-सूर्यना तेजमा ऋग्-यजु तथा साम एम प्रणे प्रकारना वेदोनुं तेज छ । भने तेधी सूर्यनाम त्रयीतनु पच्यु छ, तेना किरणो थी वस्तु पवित्र बनी जाय छे, एटले समस्त शुभ कर्म तेना प्रकाशमा करवां जोइए, तेना अभावमां नहि,।" "वेदज्ञ कहे छे के आहूति-नान-श्राद्ध-देवार्चन दानादि रात्रिमा करवा योग्य नथी, रात्रिभोजन तो बिल्कुल त्याज्य छे," "दिवसना माठमां भागमा सूर्यनो प्रकाश मन्द थई जाय छे, तेथी बुद्धिमानो तेने पण रात्रि गणे छे, अने ते समये पण भोजन वयं छे।" "देवता पहले पहरे जमी ले छे ऋषि मध्यान्ह समये जमे छे, त्रीजा प्रहरे पितृलोको भोजन पानथी निवर्ते छे, चौथा प्रहरमा दैत्य दानव जमी ल्ये छे, संध्यामां यक्षराक्षस खाय छे, हे युधिष्ठिर ! सर्वदेवताओनो समय अतिक्रमी जवाथी रात्रिभोजन अमोजन छ, । आयुर्वेदमा रात्रे खावा पीवानी मनाई छे__ "सूर्यास्त थता हृदय कमल तेमज नामि कमल अतिशय संकोचाई जाय छे, तेथी राने भोजन न करवु जोइए, अने रात्रिमा सूक्ष्म जीव खवाइ जाय छे राने खाधेलं भोजन तन्दुरुस्तीने नुकसान करे छे, तेमज तेनुं पाचन वरावर थई शकतुं नथी।" "जे दिवसे ने राने असमये खावा पीवामां मस्त रहे छे, ते शींग-पूछ वगरना पशु समान छे, तेधी मनुष्योए दिवसे समस्त शुभ प छ, तेनाणे प्रकारना
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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