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________________ २२२ वीरस्ततिः। “ ते उपरान्त बीजा पण प्रकारो छे, जेम के आहारादि राने ग्रहण . करवाने रात्रे खावां, रात्रे ग्रहण करवां ने दिवसे खावां, दिवसे ग्रहण करवां ने रात्रे खावां, दिवसे ग्रहण करवां ने दिवसे खावां, आ चार प्रकारमांनां पहला । त्रण साधुने माटे अशुद्ध अर्थात् अग्राह्य छ, ने छेवटनो प्रकार शुद्ध भने ग्राह्य छ । ___ द्रव्य भने भावनी अपेक्षाए पण रात्रिभोजनना चार भांगा थाय छे, जेमके केवळ द्रव्यथी, केवळ भावथी, द्रव्य अने भाव वंनेथी, द्रव्य अने भावथी रहित, । सूर्योदय अथवा सूर्यास्तनो सन्देह पडवा छतां पण भोजन करवामा आवे छे, ते केवळ द्रव्यथी रात्रिभोजन छे, भावथी नहि, । “हुं रात्रे भोजन करीश" एवो विचार थाय, ते केवळ भावथी रात्रिभोजन छे, भले पछी कांइ खाधुं पीधुं न होय, जाणवा छता पण रात्रे भोजन करवू, ते द्रव्य अने भाव वंनेथी छे, अने रात्रे भोजन न कर, तेमज इच्छा पण न करवी, ते द्रव्य भाव वंनेथी रहित प्रकार छ । वौद्ध मतमां रात्रिभोजन वर्जित बुद्धना आठ उपदेशोमां रात्रिभोजन वर्ण्य गण्युं छे, जेमके(१) कोई प्राणधारीनो प्राण नहिं लेवानी हुं प्रतिज्ञा करूं छु. (२) अदत्तादान (चोरी) नो त्याग करुं छु. (३) सर्व प्रकारना स्त्रीसमागमना त्यागनी प्रतिज्ञा करूं छु. (४) सर्व प्रकारना असत्य वचनथी विरमुं छु. (५) कोई पण प्रकारना मादक द्रव्य गाजो, भांग, मदिरादिकना न सेवननी प्रतिज्ञा करुं छु. (६) असमय-अर्थात् वपोर पछी भोजन करवाथी विरमुं छु, (बौद्धो वपोर पछी तेमज रात्रे पण काई खाता नथी.) (७) नाच-गान-ताल भादि अनेक प्रकारना तमासा जोवानी क्रियाथी तथा फूलमाला-गन्ध विलेपन आदि लगाढवाथी तेमज शणगार पहेरवाथी विरमुं छु । (८) ऊंचा तेमज मोटा आराम देनारा आसनो तेमज मोटी शय्यामओ पर सुवानो त्याग करूं छु, वगेरे ।। ,
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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