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________________ MALA -HaramuparnamaA NRAR संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २१९ घणामो एम पण कही दे छ के जो भोजन करवामां सदा काळ हिंसा थई जाय छे, तो दिवसे भोजन न करता रात्रेज खावं जोइए, कारण के तेम करवाथी सदा काळनी हिंसा थती नथी, परन्तु ते वात ठीक नथी, जो के उदर भरणनी अपेक्षाए सर्व प्रकारना भोजन समान छ, पण शाकाहारी भोजनमा जेटलो साधारण अने सात्विक भाव छ, तेटलो मांस भोजनमां सालिक-भाव नथी, मांस भोजनमां विशेष रागभाव छ, । घास खानारी गायने घास खाती वखते जेटलो सामान्य रागभाव छ, तेटलो उंदर मारनारी हिंसक विलाडीमा नथी, बिलाडीने मास भक्षणमा विशेष राग भाव छ । 'अन्न भोजन' सहजमा उत्पन्न थाय छे भने मळे पण छे, अने मास भोजन अतिशय कामादिकनी खातर अथवा शरीरादिकना मोहनी खातर विशेष प्रयत्ने करवामां आवे छे, ए रीते दिवसर्नु भोजन सर्व मनुष्योने सहजज प्राप्त थाय छे, तेथी तेमा साधारण रागभाव थाय छे, परन्तु रात्रिभोजनमा तो शरीरादिक तथा कामादिकना पोषणनी खातर विशेष राग भाव आवे छे, तेथी पण रात्रिभोजन त्याज ज छ। दीपकदोष-वळी दीवाना प्रकाशमा झीणा जन्तुओ आंखथी वरावर देखाता नथी, तेमज रात्रे दीवाना प्रकाशथी जुदी जुदी जातना एवां नाना मोटा जन्तुओ फरवा लागे छे, के जे दिवसे क्यारेय पण देखाता नथी, तेथी रात्रिभोजनमा प्रत्यक्ष हिंसा छे, ने रात्रिभोजन करनारा हिंसाधी पण क्यारेय वची शकता नथी, । तेथी जे भाग्यशाळी रात्रि भोजननो सर्वथा त्याग करे छे, ते साचो अहिंसक छे, रात्रिभोजनना त्याग वगर अहिंसा व्रतनी सिद्धि नथी थई शकती। तेथी कोई कोई आचार्य तेनो प्रथम अणुव्रतमा समावेश करे छ । सागारधर्मामृतमा कमु छ के अहिंसाव्रतनो साधक रात्रिभोजननो अवश्य त्याग करे छे, कारण के मूलव्रतनी शुद्धिने माटे तेमज अहिंसा प्रतनी रक्षा खातर राने चार प्रकारनो आहार त्रियोगे करी धमी आत्माओ माटे चर्जित छ । जुना विचारोना मनुष्योनो ए पण मत छे के रात्रि थतां भूत प्रेत आवीने माहारने अभडावी दे छे, वळी घणां जीवो एवां छे, के राने ते जोवा वहु मुश्केल
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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