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________________ २२० । . वीरस्तुतिः। पडे छे, जो जू आदि जीव भोजनमा खवाई जाय तो जलोदर जेवा राजरोगो यवानो संभव रहे छे, तेथी रात्रिभोजनना त्यागीज उपरोक्त आपत्तिोयी वचीने दूर रही शके छे, ।' वनमाळा नामनी राजकन्याए पोताना पति लक्ष्मणजीने रात्रिभोजनना दोषना सोगन खवडाव्या हता। जैन रामायणमा लखेलुं छे के रामचन्द्रजीलक्ष्मणजी अने सीतानी साथे दक्षिणमां फरता फरता कूर्चनगरमां आवी पहोंच्या, त्यां महीधर राजाए पोतानी वनमाळा नामे पुत्रीना लग्न लक्ष्मण साथे कर्या, थोडा दिवसो रह्या वाद त्यांथी ज्यारे त्रणेय विदाय थवा लाग्या त्यारे वनमाळा पण लक्ष्मणनी साथे चालवा लागी, त्यारे लक्ष्मणे तेम न करवा कडुं । ते साभळीने स्वामीना विरहथी दुःखी थता ते वोली के नाथ ! आप मने पाछा फरतां लई जशो के केम, ते वावतनो मने विश्वास न होवाथी हुँ आपनी साथेज रहीश, लक्ष्मण तेने विश्वास बेसे ते खातर प्राणातिपात जेवा पापनी भयंकर प्रतिज्ञा करी, त्यारे तेणे ते ते प्रतिज्ञाओ पर असन्तोष प्रगट करीने रात्रिभोजनना पापनी प्रतिज्ञा लेवढावी, लक्ष्मणे पण ते प्रतिज्ञा खीकारी लीधी अने ते राम साथे जई मल्या । ते समये रात्रिभोजननुं पाप चार प्रकारनी हत्याओथी पण वधु मानवामा आवतुं हतुं । कोईए कडुं छे के-सुपात्र पुरुष दिवसे आवे छे, तेओ राने आवता नथी, तेथी दिवस अस्त थता तेमने आहार देवानुं वनी शकतुं नथी, तेथी दान तथा कल्याणनी इच्छा पूर्ण राखनारा पुरुषो रात्रे भोजन करवानो त्याग करे छ । पुरुषोना त्रण प्रकार उत्तम पुरुष मध्यान्ह समये भोजन करे छे, मध्यम पुरुप वे वखत खाय छे । परन्तु जे सर्वज्ञ कथित धर्मथी अनमिज्ञ छे ते पशुनी पेठे दिवसने रात खाधा करे छ। वे घडी दिवस चडतां सुधी रात्रि नजीक गणाय छे, वे घडी दिवस वाकी रहेता रात्रि समीप गणाय छे, तेथी सवारनी वे घडी धर्माराधन तथा खाध्याय माटे छे, अने साजनी वे घडी प्रतिक्रमण माटे छे, तेथी ते वब्वे घडिमोने छोडी जे आहार करे छे, ते पुरुप प्रशंसनीय छे, कारण के तेम करवाथी जीवननो अर्धभाग तो उपवासमां व्यतीत थाय छ ।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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