SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ , वीरस्तुतिः। , " : . "पोतानुं जीवन, सर्व कोईने वधी वस्तुमओ करता अधिक प्रिय छे, जेम कमु छे के-"जो मरनारने एम कहेवामा आवे के तुं एक करोड सोनामहोर लईने तारो जीव दई दे । त्यारे ते धनना ढंगलाने छोडीने जीववानी आशा प्रगट करशे । कारणके जीव गयो पछी तेने माटे धन शा कामर्नु ? सर्वने जीववु, वहालुं लागे छे। तेथी सर्व दानोमां अभयदान श्रेष्ठ छ। ,, . अभयदान पर उदाहरण-वसन्तपुरंमां अरिदमन नामे राजा राज करतो हतो, ते पोतानी चार राणिओ साथे आनंद भोगवतो। एक दिन ते राणिओए गावं, वजावतुं नाचवू शरु कयुं । राजा तेमनी गाधर्व विद्या ऊपर प्रसन्न ,थई गयो, अने वोल्यो के “आजे तमे जे कई मागशो ते हुँ आपीश ।" राणिओए जवाव आप्योके अत्यारे तो अमने कोई पणे वस्तुनी आवश्यकता नथी, पण यथा समय ऊपर मागी लइशं, अमने आपेल वरदान हमणां आप जमा राखो, राजाए का “बहु सारं" ' एक वार राणीओए.. एक चोरने जोयो के जेने लाल कपडां तथा जोडानो हार पहेरावीने वध्यभूमि तरफ लई जवामां आवतो हतो । राणीओनी साथे राजा पण महेलं पर टेलतो हतो। चोरने जोईने राणीओए राजाने पूछयु के प्रजानाथ ! "आणे शो अपराध कर्यो छे ?” राजाए एक सिपाईने वोलावीने पूच्यु । तेना जवावमा तेणे कथु के-पृथ्वीनाथ ! तेणे चोरी जेवू राज्य तेमज धर्मविरुद्ध अकार्य कर्यु छ, तेथी आपेज तेने प्राणदंडनी शिक्षा फर्मावी छ। ' : ते सांभळीने तेमांनी एक राणीए कह्य के न्यायवल्लभ ! आप मने मारु वरदान आपो.के तेने एक दिवसने माटे जीवनदान आपवामां आवे, के जेथी हु तेना पर कांइक उपकार करी शकुं" राजाए कह्यु "तथास्तु" : राणीए तेने महेलमा बोलावी कम्युं के "तने आजने माटे बचावी दीधो छ माटे खा पी ने मोजकर" एम कहीने अन्न वस्त्रथी तेनुं खागत करवामा आव्युं । सवार थता तेने १००० दीनार आपीने विदाय करवामां आव्यो । - ए रीते वीजी अने त्रीजी राणीए पेण एक एक दिवसनुं जीवित दान दईने अनुक्रमे एक लाख अने एक करोड सोनामहोरनुं दान आप्यु । . , पण चोथी राणीए तेने कंड पण आप्या वगर तेने प्राण दंडनी सजा राजानी पासे क्षमा करावी दीधी। सारे साभळीने ते त्रणेए कांके ,“एने तें झुं
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy