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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १६६ आप्यु ?” चोथी राणीए कह्यु के. "में तेने ए वस्तु आपी छे के जे तमे वधी मळीने स्वप्नमा पण न आपी शको" ते साभळीने ते बधी क्रोध करीने तेने गळे पडीने बोली के “अमे तेने क्रोडपति बनावी दीधो अने तुं कहे छ के अमे एना पर तारा जेटलो उपकार पण नथी कर्यो !” चोथीए कयु के “धन थी पेण अधिक प्रिय सौने पोताना प्राण होय छे।" में तेने प्राण दान अपावीने हमेशने माटे सुखी बनावी दीधो छ । हवे तेने मरवानो भय नथी रह्यो। जेथी में सौथी मोटुं कार्य कर्यु छ । जो मारी आ वात पर तमने विश्वास न होय तो राजानी पासे आनो न्याय कराववो जोइए" एटली वात थया पछी राजाने महेलमा बोलाववामां आव्यो। राणीओनो मुकद्दमो साभळीने राजाए चोरने बोलाव्यो अने पूछ्युं "तुं साचुं कहे के कई राणीनो तु अधिक उपकार माने छे ?” तेणे विनय पूर्वक शिर झुकावीने कयु के-एम तो बधीए मारा पर. भारे उपकार को छे, कारण के तेणे मने अभयदान अपाव्यु छ। त्रणे राणीओए क्रोडोनु धन आप्यु अने एक एक दिवस मरता वचाव्यो पण ए भय माथे रह्योज हतो के काले तो मरी जवानुं छे, तो आ धनने शु करु ? पण चोथी राणीए मने सकटमाथी बचावी दीधो छ । जेथी हु जावजीव सुधी निर्भय वनी गयो, तेथी आ उपकारनो वदलो मारो देह अपने पण नहि चुकावी शकुं । “कारणके सर्वदानोमा अभयदान श्रेष्ठ छ ।" __एज प्रकारे सत्यवचनो निरवद्य-पापरहित-अन्यनी पीडा दूर करवावाळी भाषा सर्वोत्तम छे, कारण के काणा-नपुंसक रोगी-चोरादिने तेना नामे बोलाववाथी पण तेना मनने आघात पहोंचे छ। मनुनो मत-"सत्य-प्रिय-तेमज मनने अनुकूळ बोलो, असत्य तेमन अप्रिय सत्य पण न बोलो। आ प्रसग मा असत् शब्दना जैनसिद्धान्तमा त्रण अर्थ छ । सद्भावनो प्रतिषेध, तेमज अर्थान्तर तथा गर्दा-निन्दा । वस्तुना स्वरूपना अपलापने सद्भावनो प्रतिषेध कहे छे । ते वे प्रकारे छे। सद्भूत पदार्थनो निषेध तेमज असद्भूत्त पदार्धनु निरूपण । जेमके "नास्ति आत्मा" अर्थात् आत्मा कोइ स्वतन्त्र पदार्थ नथी, अथवा "नास्ति परलोक " परलोक ' अर्थात् मरण पछी जीवने अन्य भव धारण करवो पडे, ए वास्तविक नथी, ‘एं वगेरे भूत निन्हव छ। कारण के तेथी सद्भूत पदार्थनो अपलाप थाय छे । आत्मा तेमज परलोक जीवनु भवान्तर धारण करवु वास्तविक रीते सिद्ध पदार्थ छ, युक्तियुक्त तेमंज
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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