SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरस्तुतिः । । इस जातिका शब्द पर त्रिपिटकाचार्य श्रीयुत राहुलसकृत्यायन ने इस पर विशेष प्रकाश डालाहै । उसने अपनी 'बुद्धचर्या' *नामक हिन्दी पुस्तकों 'नादिका' का मूल शब्द "नाटिका"-ज्ञातृका,, वताया है। और 'ज्ञातृका' शब्द ज्ञातृवंशके क्षत्रियोंका सूचक है यह सप्रमाण वताया है। वे अगाडी चलकर यह भी बताते हैं कि-ज्ञातृ जाति लिच्छवियोंकी शाखाथी । और वैशाली नगरीके आसपास ही रहने वालीथी । यह ज्ञातृ जाति आज भी वैशाली नगरी (जिला मुज़प्फरपुरके अन्तर्गत है, बसाडके पास) के आस पास जथरिया नामक जातिसे पहचाना जाता है, यह जथरिया शब्द भाषाकी दृष्टिसे भी 'ज्ञात' शब्दके साथ गहरा सबंध रखता है । जरिया शब्द 'ज्ञात' शब्दका अपभ्रंश शब्द प्रतीत होता है । 'ज्ञात' शब्दमेंसे जथरिया शव्दका अवतरण किस प्रकार होगया इसके विषयमें राहुलजीने भाषाकी' दृष्टिसे निम्न प्रमाणसे विचार कियाहै । ज्ञातृजाति, ज्ञातज्ञातर-जातर-जतरिया जथरिया-जैथरियाके गाँवमे नादिका-ज्ञातृका-नत्तिकालतिका-रत्तिका-रती जिसके नामसे वर्तमान रत्ती पर्गना (जि० मुजफ्फरपुर) है । बुद्धच- २९ पृ० । इस प्रकार 'जथरिया' शब्द 'ज्ञात'का अपभ्रंशहै राहुलजी इस रत्ती पर्गनाका मूल नाम अपने उपरोक्त उल्लेखमे आए हुए 'नादिका' शब्द से उत्पत्ति बताते हैं। * उस समय वही भारी निग्गंठोंकी परिषद (जैन साधुओंकी जमात) के साथ निग्गंठ नाटयुत्त (महावीर) नालन्दामें ही निवास करते थे। (१) 'नाटपुत्त'-'ज्ञातृपुत्र'लिच्छवियोंकी एक शाखा थी । जो वैशाली के आस पास रहतीथी। ज्ञातृसे ही वर्तमान जथरिया शब्द बना है । महावीर और जथरिया दोनोका गोत्र काश्यप है । आज भी जथरिया भूमिहार ब्राह्मण इस प्रदेशमें बहु सख्यामें है। उनका निवास रत्ती पर्गना भी ज्ञातृ-नती-लतीरतीसे बना है। १११ पृष्ठमें निगंठ पुत्तका भी उल्लेख किया है जो कि सं०नि० ४०1१1८ से उद्धृत किया गया है।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy