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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १५५ 'शातृवंशी क्षत्रिय रहते थे। यह इस विचारको और भी दृढ कर देता है । यह "ज्ञातृक" का उल्लेख और ये 'ज्ञातृक' भ० महावीरकी जन्म जातिवाले 'ज्ञात' क्षत्रिय ही होंगे यह कल्पना की और निर्देश करता है। (३) 'ज्ञात' जाति लिच्छविओंकी एक शाखा थी* इस वातकी पुष्टिके लिए भी 'वैशाली के लिच्छवी क्षत्रिय महात्मा बुद्वको मिलने आए थे' इस उल्लेखसे पता चल जाता है कि भगवान् महावीर की माता भी लिच्छवि वंशकी ही थी और 'सिंह सेनापति' जोकि-भगवान् महावीर का श्रावक था वह भी लिच्छवि वंशका ही था। ये दोनों बातें ज्ञातृ जातिको लिच्छविओंकी शाखा का होना ही पुष्ट करती हैं। (४) कुण्डग्रामके पास विदेहकी राजधानी वैशाली नगरी थी। इस नगरी का कुण्डग्राम एक शाखापुरके समान था। भ० महावीर प्रभुका "वैशालिक" नाम भी इस नगरके नाम से ही प्रसिद्ध था, विशाला नगरी में सिंह सेनापति नामका जो निग्रन्थ श्रावक लिच्छवी रहता था वह भगवान् महावीर की सलाहको न मानकर महात्मा बुद्धके पास गया था। इससे भी महात्मा बुद्ध वैशाली नगरमे आया था तव भगवान् महावीर प्रभु भी उसी नगरमे थे, यह स्पष्ट जान पडता है। ऊपरके उल्लेख में जो 'जातिका' शब्द लिखा गया है, उस शब्दका मूल वहुतोंने 'नादिका' भी निकाला है, और उसका अर्थ 'इस नामके जलाशयके तट पर बसा हुआ एक ग्राम किया जाता है । मगर यह भ्रमपूर्ण है । इस प्रकार हर्मन जेकोबी उसका मूल शब्द जातिका ही वताता है। और वह शब्द 'ज्ञातृवंश' के क्षत्रियों का वाचक है यह कह कर समर्थन करता है। * प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर महावीरकी माता भी लिच्छवी वंश की ही थीं। देखो 'भारतका प्राचीन राजवंश पृ. ३७८ लेखक विश्वेश्वरनाथ राय । * हर्मन जेकोबी की 'Sacred Books of The Last' नानक अन्यमालासें प्रकाशित 'आचाराग और कल्पसूत्र' नामक जैनसूनोंके अनुवाद की प्रस्तावना, पृष्ट १०॥
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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