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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १५७ इस प्रकार 'जथरिया' और उसका वर्तमान निवास 'रती' ये दोनों शब्द 'ज्ञात' शब्दके साथ घनिष्ट सवन्ध रखते हैं और इस सवन्धसे 'जथरिया 'ज्ञातृक'-ज्ञातृवंशी ही हैं, और उनका प्राचीन निवास स्थान जोकि 'नादिका' या 'नाटिका' के नामसे पहचाना जाता था वही वर्तमान रती परगना है यह राहुलजीका दृढ मन्तव्य है । इनके इस दृढ और पुष्ट मन्तव्यमे दूसरी यह मी युक्ति है कि-इन 'जथरियोंका' मूल गोत्र काश्यप है। वही काश्यपगोत्र भगवान् महावीर और उनके ज्ञातृवशी क्षत्रियोंका भी था। इन जथरिया-ज्ञातृवशी क्षत्रियोंके विषयमें सूचना करते हुए श्री राहुलजी बताते हैं कि ये 'जथरिया' लोक वर्तमान समयमे अपनेको ब्राह्मण बताते है। ये दान नहीं लेते। पंजाव प्रान्तमेंमी जमना नदीके किनारे बसने वाली एक जाती रहती है। वे भी दान नहीं लेते। उस देशमे उनको तगा कहते है। शायद यह त्यागीका अपभ्रष्ट होगया हो । हा तो इन 'जथरिया' जातिके लोकों को भूमिहार ब्राह्मण कहा जाता है। मगर और लोक इनको ब्राह्मण नहीं मानते। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि-वास्तवमे ये लोक क्षत्रिय ही हैं। इसका दूसरा कारण यह भी है कि ये 'जथरिया' नाम सिंहान्त वाले हैं। जो क्षत्रियोंके नामके साथ आजकल पीछेसे लगाया जाताहै और इनके नामके पीछे ठाकुर शब्द भी जोडा जाता है । यह भी क्षत्रिय सूचक ही है । इस वंशमें आजकल भी बहुतसे जमीनदार और राजा भी हैं । दर्भगा नरेश इसी जातिसे अलंकृत सुने जाते हैं। बौद्धसाहित्यके उल्लेखोसे तथा राहुलजीके कथनसे इतना अवश्य माना जा सकता है कि भगवान् महावीरका वंश 'ज्ञातृवश' था। और वे ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय कुण्डग्रामके पास रहते थे । और इन ज्ञातृवंशीय क्षत्रियोंके ग्राममे महात्मा बुद्ध आए थे। वर्तमान समय में ये ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय 'जथरिया के नामसे प्रसिद्ध हैं । और वे प्राय. विहारप्रान्त के मुजफ्फरपुर जिलेके रत्ती नामक पर्गनेमें रहते हैं। और ये 'जथरिया' अपने नामके पीछे सिंह और ठाकुर शब्दका उपयोग भी करते है । और काश्यप गोत्र होनेसे ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय हो सकते हैं । मगर ये लोक आजकल अपनेको भूमिहार ब्राह्मण कहते हैं। वस्तुत• इसके पीछे सत्य खरूप कहा तक छुपा हुआ है इसे शोध करके प्रकट करनेकी वही ही आवश्यकता है, इस सत्य शोधसे भगवान महावीर प्रभुके
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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