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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १३३ तब वह उस दोषका भागी नहीं समझा जाता । क्योंकि इस लक्षणमें प्रमादका योग मुख्य रूपसे बताया है और अप्रमत्त अवस्थाका नाम 'अहिंसा' है। ___इसके अतिरिक्त योग सूत्रके व्यास कृत भाष्यमें मी अहिंसाका लक्षण गांधते समय उन्होंने बताया है कि सर्वदा सब प्रकारके जीवोंसे कभी द्रोहका न करना 'अहिंसा' है। याज्ञवल्क्यस्मृतिमें-योगी जनोंने मनवचन काय से किसीको क्लेश न पहुंचाना 'अहिंसा' कहा है।। ____ "अहिंसा, सत्यबोलना, परवस्तुको विना आज्ञा न लेना, आत्माको पवित्र बनाना, इन्द्रियोंका वश करना, दान देना, दया करना, मनो विकारोंके प्रवाहको दमना, शान्त रहना, इन सबको धर्म साधन बताया है।" ___ यजुर्वेद-यहां भी यही उपदेश दिया है कि "हे पुरुष! तू जगत् के किसी भी प्राणीकी हिंसा मत कर "मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे, १८-३ अपनी आखोंसे सवको मित्रकी दृष्टि से देख शत्रुकी सी दृष्टि किसी पर मत डाल।" मनुका पांचवा अध्याय-"जो मनुष्य अपने कल्याणकी तो इच्छा प्रगट करता है परन्तु प्राण, भूत, जीवोंकी हिंसा कर डालता है, वह जीव अपनी इस जीवित दशामें और मर कर परलोकमें कमी भी सुख न पायगा।" . दशधर्म-"धैर्यरखना, शातिकरना, आत्माको पापसे विरत करना, चोरी न करना, आन्तरिक पवित्रता रखना, इन्द्रियोंको वशमें रखना, सत्य बोलना; क्रोध न करना, अहिंसाका पालन करना, इस प्रकार धर्मके दश लक्षण कहे हैं। जिनमें अहिंसाको भी स्थान प्राप्त है।" महाभारत-"मैं यह सत्य कहता हूं कि-सत्यवादियोंका धर्म अहिंसा है. और यही सब धाम प्रधान है, तथा हिंसा करना अधर्म और पाप है।" अहिंसा वचनामृत-"अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा उत्कृष्ट दमन है, महिंसा उत्कृष्ट दान है, अहिंसा प्रधान तप है, अहिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा, परम फल है, अहिंसा परम मित्र है, अहिंसा उत्कृष्ट सुख है।" सब प्रकारके यज्ञोंमें अनेक प्रकारके दान करना, सब तीर्थोमें अनेक स्तुतिएँ गाना, सव दानोंका फल या परिणाम अहिंसासे बढ कर नहीं है । अर्थात् वे कर्म अहिंसाकी पराक्री नहीं कर सक्वे".
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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