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________________ आध्यात्मिक चेतना ३६७ भाईयो, दुर्गादास एक ही वहादुर व्यक्ति था, जिसने हाथ से गई हुई मारवाड़ की भूमि को वापिस ले लिया । यदि ___ 'दुर्गा जो जगत में नहीं होता, तो सुन्नत सबकी हो जाती। उसके विषय में यह कहावत आज तक प्रचलित है कि यदि गारवाड में दुर्गादास नहीं होता तो सव तलवार के बल पर मुसलमान बना लिये जाते । भाई, एक ही माई के लाल ने सारे देश की रक्षा करली । राणाप्रताप, शिवाजीराव और दुर्गादास की यह ख्याति उनके उस शूरवीरता के साथ किये गये कामों से ही है। इन तीनों में से दो के पास तो राज्य था । परन्तु दुर्गादास के पास क्या था ? फिर भी वह शान्ति के साथ लडा और देश की आन रखी। उसे पराधीन नहीं होने दिया। जब वादशाह ने कहा- दुर्गादास, मैं तुमको मारवाड़ का राज्य देता हूँ और राज-तिलक करता हूं तो उन्होंने कहा—मुझे इसकी आवश्यकता नही । आप राजतिलक जो राजगद्दी के अधिकारी हैं, उन्हें ही कीजिए। इस प्रकार दुर्गादास ने अपना सारा जीवन देश के लिए समर्पण कर दिया, मां-बाप और बेटे सवसे हाथ धोया, फिर भी उन्होंने राज्य के किसी भी पद को लेना स्वीकार नहीं किया। किसी बात पर मनमुटाव हो जाने पर वे मारवाड़ छोड़कर चले गये, परन्तु राजाओं का सामना नहीं किया और सच्ची स्वामिभक्ति का परिचय दिया। भाइयो, जिनके हृदय में देश के लिए, जाति के लिए और धर्म के लिए लगन होती है, वे तन, मन और धन सर्वस्व न्योछावर करके उसकी रक्षा करते हैं । इसी प्रकार जिनके हृदय में आत्मा की लगन होती है, वे भी उसके लिए सर्वस्व न्योछावर करके आत्म-हित में लगे रहते हैं, इसी का नाम आत्मजागति है और इसे ही आध्यात्मिक चेतना कहते हैं । बन्धुओ, कल चौमासे का अन्तिम दिन है। जैसे मन्दिर बन जाने पर उसकी शिखर पर कलमा चढाया जाता है, इसी प्रकार कल चौमासे के कलशा रोहण का दिन है और धर्म के पुनरुद्धारक लोकाशाह का जयन्ती-दिवस भी है । तथा कल साढ़े तीन करोड़ मुनिराजों के मोक्ष जाने का दिन भी है । अतः कल का दिन हमे बड़े उत्साह के साथ मनाना चाहिए । कल चतुर्मास के लेखाजोखा का दिन है। हमें देखना है कि हम कितने आगे बढ़े हैं और संघ कैसे आगे दिन-प्रतिदिन उन्नति करता रहे, इसका भी निर्णय करना है । हम तो यही चाहते हैं कि संघ और धर्म की उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे और संगठन का विगुल बजता रहे। वि० सं० २०२७ कार्तिक शुक्ला १४ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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