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________________ प्रवचन-गुधा महाराज, मैं सबको जानता है। परन्तु अव किमी का पर्दा उधाना नहीं चाहता हूँ । राजा उसकी बात सुनकर बोना-अरे तू तो बडा समझदार मालूम पड़ता है। फिर तूने इतनी चोरिया करो की? यह बोला-महाराज, मैंने नहीं की, परन्तु आपने कराई है ? गजा ने पूछा--मैने कसे कराई ? वह बोला-महाराज, आप सारी प्रजा के रक्षक और प्रतिपालक कहताते हैं । यदि आप गरीबो की दीन दशा का ग्याल रयते, उन्हें रोजी मे लगाते और उनकी सार-समाल करते, तो हम गरीब लोग कोरिया को करते ? राजा उसकी यह बात सुनकर मन ही मन लज्जित हुआ। फिर भी उसमे प्रसाट मे पूछा-अच्छा बता, उन चोरियो का माल कहा 'चाहा है ? उसने बनला दिया जितने भी आप के राज्य में साहूकार बने बैठे है, सबके घर में वह माल रखा है । क्योकि हम लोग तो चोरी करके जो माल लाते थे, वह सब आवे दामो पर साहूकारो के यहा बैंच जाते थे। एक यह मेठ ही ऐसा मिला, जिसने कभी किसी की चोरी का माल नहीं लिया। मैं तीन बार इनके घर मे भी चोरी को गया और इन्होने मुझ चोरी करने का अवसर भी दिया । मगर मेरी नीति के विरुद्ध होने से कभी इनके माल को नही लिया और मेरी इसी ईमानदारी पर प्रसन्न होके इन्होने मुझे गोद लिया है। उसके मुख से ये खरीखरी और सच्ची वातै सुनकर राजा ने ससन्मान उसे विदा किया । भाइयो, जो सत्यवादी और अपने नियम पर दृढ रहता है, वह सर्वत्र प्रशसा पाता है। अब वह अपने माता-पिता की मन वचन काय से भरपूर सेवा करने लगा और कारोवार को भी भली-भाति चलाने लगा। चारो ओर उसका यश फैल गया। जव वह अपने माता-पिता से खुव रच-पच गया और उनका भी उस पर पूरा विश्वास हो गया, तव एक दिन सेठानी ने उससे कहा बेटा, अब मैं तेरी शादी करना चाहती हूँ। वह वोला--माताजी, मेरा विवाह हो चुका है और घर पर बाल बच्चे भी हैं । अव यदि मैं दूसरी शादी काँगा तो उन लोगो पर यह बडा अन्याय होगा । तब सेठानी ने कहा तो चेटा, बहु को बच्चो के साथ तू यही पर ले आ। उसने कहा--माताजी, आप स्वय मेरे घर पर जावे और यदि आपको जच जावे, तो आप लिवा लाइये। सेठानी उसके घर गई, साथ मे उसे भी ले गई । जाकर उसकी स्त्री से कहा- बहू जी जैसा तेरा यह धनी सुधर गया है, यदि तू भी सुधरने को तैयार हो तो तेरे लिए मेरा घर-वार तैयार है । उसने कहा-मा साहब, जहा गोलमाल चलता है। वही पर खोट चलती है । जब मेरे धनी सुधर गए है तो में भी सुधर जाऊँगी।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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