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________________ ३१७ सिंहवृत्ति अपनाइये ! तो अभी उल्लास है, यदि आप गोद का मुहूर्त करते हों तो ठीक है, अन्यथा दूसरे ज्योतिपी को बुला करके करा लेता हूं। यह सुनकर वे ठंडे पड़ गये और उसी समय गोद का दस्तूर करके उसे तिलक कर दिया और बिरादरी में नारियल वटवा दिया। अब सेठने उसे तिजोरी की और दुकान की चाबियां देकर कहा - जाओ बेटे, दुकान खोलो। वह बोला-मैं जाकर के दुकान खोनू ? लोग मुझे देखकर क्या कहेंगे ? सेठ बोला-बेटा, तू डर मत । मैंने जव तुझे अपना बेटा बना लिया है, तव डर की कोई बात नहीं है । वह दुकान पर गया और उसे खोलकर बैठ गया। लोग उसे दुकान पर बैठा हुआ और काम-काज करता हुआ देख कर नाना प्रकार की टीका-टिप्पणी करने लगे और कहने लगे कि सेठजी क्या वावले हो गये हैं, और क्या सारी जाति वाले मर गये हैं जो चोर को गोद लिया है ? इस प्रकार नाना तरह की बातें करने लगे । ग्राहक भी दुकान पर उसे वैठा देखकर चोंकने लगे। सेठजी ने यह सब देखा और सना । उन्होंने लड़के से कह किया-बेटा, तू किसी बात की चिन्ता मत कर ! ग्राहक को कम से कम मुनाफे में चीज देना । थोड़े दिनों में सब ववंडर शांत हो जायगा और दुकान का काम चल निकलेगा। धीरे-धीरे वातावरण शान्त हो गया और सेठ के द्वारा व्यापार की कलाओं को सीखने से वह भी व्यापार में कुशल हो गया । ग्राहक भी माने लगे और पूजी भी बढ़ने लगी। उसकी सच्चाई और ईमानदारी को देखकर निन्दा करने वाले लोग भी अव सेठजी की प्रशंसा करते हुए कहने लगे-देखो, सेठ ने कैसा पात्र चुना और उसे कैसी व्यापार-कला सिखाई ? वात फैलतेफैलते राजा के कान तक पहुंची कि अमुक सेठ ने अमुक प्रसिद्ध चोर को गोद लिया है तो उन्होंने दीवान से कहा उस सेठ के गोद लिए हुए लड़के को पकड़ बुलायो । उसने पहिले बहुत चोरियां की हैं ! दीवान ने कहा-महाराज, अब तो उसकी सारे बाजार में पैठ है और साहूकार का बेटा बना बैठा है । यदि उसे पकड़ाऊँगा तो सारे नगर में हड़ताल हो जायगी। राजा ने कहाअरे, उस चोर को बाजार में ऐसी पैठ जम गई है । मैं भी देखू उसे । आदमी भेजकर उसे बुलामो । जव वह राजा के पास आया तो आते ही राजा को नमस्कार कर वह एक ओर खड़ा हो गया। राजा ने पूछा-आज तक नगर में सैकड़ों चोरियां हुई हैं । क्या तुझे मालूम हैं ? वह बोला—हां महाराज, मुझे अच्छी तरह मालूम है । राजा ने फिर पूछा, कि वता, किस-किसने कौनकौन सी चोरियां की हैं । उसने कहा-अमुक-अमुक नम्बर की चोरिया मैंने की हैं । जव राजा ने पूछा-शेप चोरियां किसने की हैं ? तब वह बोला---
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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