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________________ २६० प्रवचन-सुधा जैसे पानी बरसने पर भी जहां की भूमि गीली न हो, तो उसे कठोर भूमि कहा जाता है, उसी प्रकार सत्संग पाकर और धर्मोपदेश सुनकर भी यदि हमारा हृदय कोमल नहीं हो रहा है, तो समझना चाहिये कि वह कठोर है ? यही कारण है कि हमारे विचार कुछ और है और प्रकार कुछ मीर ही करते है। जो लोग उत्तम जाति, उत्तम कुल और उत्तम देश में जन्म लेकर के भी आर्यपने के गुणो से रहित होते है, उन्हें वास्तव में अनार्य हो समझना चाहिए । आर्य होने के लिए वाहिरी धन-वैभव आदि की आवश्यकता नहीं है, किन्तु आन्तरिक गुणो की ही आवश्यकता है ! एक बार विहार करते हुए हम एक गांव में पहुंचे। वहां पर एक ब्राह्मण के घर को छोड़कर शेप सब अन्य जाति के ही लोगों के घर थे । संघ्या हो रही थी और हमें वहां पर रात्रि पर ठहरना था । हमे मालूम हुआ कि अमुक घर ब्राह्मण का है, तो हम उस घर के आगे पहुंचे। द्वार पर एक बाई खड़ी थी। हमने उससे कहा कि हमें यहां रात भर ठहरना है यदि तुम पोल में ठहरने की आज्ञा दे दो तो ठहर जाये, क्योकि सर्दी का मौसम है । उस बाई ने पूछा-तुम कौन हो? मे नहीं जानती कि तुम चोर, वदमाश या डाकू हो ? मैंने कहा-बाई, तू बिलाड़े के पास अमुक गांव की जाई-जन्मी है। और हम तो जगत्-प्रसिद्ध हैं, सभी लोग जानते हैं कि हम कौन हैं । वह यह सुनकर भी बोली-पोल तो दूर की वात है, हम तो तुम्हे चबूतरी पर भी नहीं ठहरने देंगे। मैंने कहा-बाई, तेरा धनी आने तक तो ठहरने दे, क्योंकि हमारे प्रतिक्रमण का समय हो रहा है । परन्तु उसने नहीं ठहरने दिया। हम भी 'अच्छा, तेरी मर्जी' ऐसा कहकर चल दिये और समीप में ही एक नीम के वृक्ष के नीचे भूमि का प्रतिलेखन करके बैठ गये। इसी समय एक आदमी आया और बोला-महाराज, माघ का महीना है, सर्दी जोर पर है । यहां पर आप ठर जाओगे। और फिर यहां पर चीचड़े भी बहुत है। मैं जाति का बांभी ह। मेरा मकान अभी नया वना है, उसमें पोल है, उसमे आप यदि ठहर सकते हों तो ठहर जाइये । मैंने उसमें अभी रहवास नहीं किया है । मैंने कहा---भाई यदि रहवास भी कर लिया हो तो उसमें क्या हर्ज है ? कोई धूल-मिट्टी तो तेरी जाति में नहीं मिली है ? फिर हमारा सिद्धान्त तो मनुष्य जाति को एक ही मानता है। यदि तुम्हारी भावना है तो दे दो। इस प्रकार हम उसकी आज्ञा लेकर उसकी नई पोल में ठहर गये । तत्पश्चात् उसने अपनी बिरादरीवालों को इकट्ठा किया और उनसे कहा-----अपने गाव में साधु महाराज आये हैं, तो इनका उपदेश तो सुनना चाहिए। आज अपना तंवरा नहीं बजायेंगे और इनका ही उपदथ
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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