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________________ आर्यपुरुप कौन? २८६ आचार-विचार खराव है, वह अनार्यपुरुप है। यह आर्य शब्द आज का नहीं, किन्तु मनादिकाल का है। शायद आप लोगों ने यह समझ रखा है कि यह आर्य शब्द दयानन्द सरस्वती ने प्रकट किया है, क्योंकि उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की है। हमारे जैन सूत्रों में यह शब्द सदा से ही उत्तम पुरुषों के लिए प्रयुक्त होता आया है । जैसे कि आर्य जम्बू, आर्य सुधर्मा आदि । गृहस्थों के लिए भी यह प्रयोग मिलता है-अहो आर्यपुत्र ! जब तक यहां पर भोगभूमि प्रचलित थी, तब तक स्त्री अपने पति को 'आर्य' और पति अपनी स्त्री को 'आर्य' कह कर ही सम्बोधित करते थे। तत्त्वार्यसूत्रकार ने मनुष्यों के दो भेद बतलाये है. - 'आर्या म्लेच्छाश्च' अर्थात् मनुष्य दो प्रकार के हैं----आर्य और म्लेच्छ 1 म्लेच्छों को ही अनार्य कहते हैं। म्लेच्छों का लक्षण बतलाते हुए कहा गया है धर्म-कर्मवहिता इत्यमी म्लेच्छका मताः । अन्यथाऽन्यः समाचाररार्यावर्तेन ते समाः ।। अर्थात्--जो लोग धर्म-कर्म से बहिर्भूत है--जिनमें धर्म-कर्म का विचार नहीं है, वे पुरुप म्लेच्छ माने गये हैं । अन्य कार्यो का आचरण तो उनका आर्यावर्त के पुरुषों के ही समान ही होता है । ___ऋद्धि या लब्धि से रहित आर्य पुरुप भी पांच प्रकार के होते है--क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य । काशी-कौशल आदि उत्तम क्षेत्र में उत्पन्न हुए पुरुष क्षेत्रार्य है । इक्ष्वाकु आदि उत्तम वंशों में उत्पन्न मतुप्य जात्यार्य है। असि-मपी आदि से आजीविका करनेवाले लोग कर्मार्य हैं। सम्यग्दर्शन को धारण करने वाले मनुष्य दर्शनार्य कहलाते हैं और चारित्र को धारण करने वाले चारित्रार्य कहे जाते हैं । धार्मिक दृष्टि से आर्य भाइयो, यहाँ पर हमें दर्शनार्य और चारित्रार्य से ही प्रयोजन है । जिनके भीतर विवेक है, हेय-उपादेय का ज्ञान है और आचार-विचार उत्तम है, वे ही यथार्थ में आर्य कहे जाने के योग्य हैं। आर्य पुरुष की प्रकृति कोमल होनी चाहिए. कठोर नहीं । कोमल हृदय में ही सद्गुण उत्पन्न होते हैं, कठोर हृदय में नहीं । जैसे कि कोमलभूमि में ही वीज उत्पन्न होता है कठोर भूमि में नहीं। पर जब हम देखते है कि बार-बार उपदेश दिये जाने पर भी हमारा हृदय करुणा से आई नही होता है, तब यही ज्ञात होता है कि हमारा हृदय कोमल नहीं ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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