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________________ प्रवचन-सुधा वन गया है। यह सुनकर गव अति विस्मित होते हुए उसके कमरे में पहुंचे । उन्होंने वह फूलमाला उससे मांगी, तो उसने उन्हें दे दी। उनके हाथ में लेते ही वह सांप रूप से परिणत हो गई और उसने एक-एक करके तीनों को उस लिया। उसके डसते ही वे तीनों बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ी और घर में हाहाकार मच गया। यह सुनते ही उस लड़के के पिता-भाई आदि भी दौड़े आये, और उस सम्यक्त्वी वाई को कोसने लगे। उसने णमोकार मंत्र को जपते हुए उस सांप को हाथ में उठाया, तो वह फूल की माला बन गया। यह देखते ही वे लोग बोले-वाई, आज हम लोगों ने तुझे पहिचान लिया है । हम लोगों के अपराध को क्षमा व.र और इन लोगों को जिन्दा कर दे। पति ने भी कहा-~-श्रीमती, इन्हें जिलाओ । अन्यथा मेरा मुख काला हो जायगा । यह सुनते ही उसने णमोकार मंत्र को जपते हुए उस माला को उन मूच्छितों के शरीर पर फेरा । माला के फेरते ही वे सब होश में आगई और हाथ जोड़कर बोली-बींदणीजी, हम लोगों को क्षमा करो। हम तुम्हारे सत्यधर्म से परिचित नहीं थे 1 तव श्रीमती ने कहा-मां साहब, इसमे मेरी कोई कला नहीं है। यह तो नमस्कार मंत्र का प्रभाव है। उन लोगों के पूछने पर उसने वह मंत्र सवको सिखाया । यह प्रत्यक्ष फल देखने से सबकी मंत्र पर श्रद्धा जम गई। पुनः उन्होंने कहा कि इस मंत्र के जपने की विधि भी बताओ! तव श्रीमती ने कहा-द्वितीया, पंचमी, अप्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या के दिन रात्रि-भोजन नहीं करना होगा, जमीकन्द नहीं खाना होगा ओर कच्चा पानी भी नहीं पीना होगा। तथा प्रतिदिन प्रात: सायंकाल शरीर शुद्ध करके शुद्ध वस्त्र पहिनकर एकान्त मे बैठकर मोन पूर्वक १०८ बार इसका जाप करना । इस विधि से यदि जाप किया जायगा, तो यह महामंत्र सदा सिद्धि प्रदान करेगा । कवि ने कहा हैश्रीमती लाई पुष्प की माला, कोढ़ गयो रे श्रीपाल को। जाप जपो रे नवकार को । १ सकल मंत्र शिर मुकुट मणो है--साधन है रे निसतार को। जाप जपो रे नवकार को । २ उदयदान कहै उद्योगी बनके, तिर जावो भव पार को। जाप जपो रे नवकार को । ३ माइयों, नमस्कार मत्र का यह थोड़ा सा माहात्म्य आप लोगों को बताया है। इसके जाप से असंख्य प्राणी संसार से पार हो गये और अनेकों के भयानक संकट दूर हुए हैं। यह अनादि मूल मंत्र अनादि काल से जगमगाता आया है
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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