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________________ २७२ प्रवचन-सुधा आदि की चल अचल सम्पत्ति पर कब्जा किये बैठे हैं। और समाज के मागने पर देना तो दूर रहा--हिसाव तक नही बतलाते है। आपके इसी जोधपुर मे पहिले कितने उपाश्रय और स्थानक थे। पर लोग उन्हे हजम कर गये। वादशाह की ओर से पर्यु पण पर्व मे हिंसाबन्दी आदि के परवाने जिन्हे सौंप गये थे उन्होने और उनके उत्तराधिकारियो ने समाज के मागने पर भी नहीं दिये और वे सब नष्ट हो गय । ऐसे लोग जहा भी और जिस भी काम म हाथ डालेंगे, वही बटाढार होगा। और मी देखो-आपके पूर्वजो ने ये उपाश्राय और स्थानक किसलिए बनाये थे? इसीलिए कि लोग निराकुलता पूर्वक यहा वैठक र सामायिक करे, पोसा करें और स्वाध्याय-ध्यान करे । परन्तु आज लोग इन्हे भी अपने काम मे लेने लगे है और इनमे बारात तक ठहरान लगे हैं और खान पान के अनेक आरम्भ-समारम्भ भी प्रारम्भ कर दिये है। यदि कोई उन्हे रोकता है तो लडने को तैयार हो जाते हैं । भाई, ऐसी अनीति करने वाले लोग क्या फल-फूल सकते है ? कभी नहीं । कहा है अन्यायोपाजित वित्त दश वर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते त्वेकादशे वर्षे समूल च विनश्यति ।। अर्थात्-~~अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन दश वर्ष तक ठहरता है और ग्यारहवे वर्ष मे गाठ का भी लेकर विनष्ट हो जाता है। वह स्थायी नहीं रहता। बन्धुओ, भगवान ने तो यह उपदेश दिया है कि जो महापाप के स्थान है, उन्ह पहिले छोडो । पीछे त्याग और तपस्या करो। परन्तु आज भगवान के भक्त पापम्यान तो कोई छोडना नही चाहत है और अपना बडप्पन दिखान और दुनिया की आखा मे धूल झोकने के लिए त्याग और तपस्या का ढोग करते हैं। भाई, ऐसा करना महा मायाचार है। इससे तियग्गति का ही मानव होता है और अनेक जन्मो तक पशु पर्याय के महादु ख भोगना पडते है। ___ आप लोग देख कि हिन्दु और जैनियो के कितने मन्दिर हैं, ईसाइयो क कितन गिरजाघर है और मुसलमानो की कितनी मस्जिदे हैं। पर कही आपने दखा कि किसी न उन्हें बेचा हो या किराये पर दी हो ? कही भी ऐसा नहीं दखेंगे। वे लोग नयी तो बनाते हैं, पर पुरानी को वेचते नहीं है । न कभी कोई मन्दिर या मस्जिद को गिरवी ही रखता है। इसलिए इस ओर मी आपको ध्यान दना चाहिए और न अपने काम मे लेना चाहिए, न किराये पर हो देना चाहिए न गिरवी ही रखना चाहिए। इसी प्रकार देवद्रव्य, सुकृत का
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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