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________________ धर्मादा की संपत्ति २७३ द्रव्य और धर्माद का द्रव्य भी अपने काम में नहीं लेना चाहिए। मया आपने कभी यह विचार किया है कि हिन्दुमों के मन्दिर में जाने पर प्रसाद दिया जाता है। परन्तु जैन मन्दिरों में जाने पर क्यों नहीं दिया जाता है ? इसका कारण यही है कि देव द्रव्य हमारे काम की वस्तु नहीं है, वह निर्माल्य है । तीर्थ क्षेत्रों पर जो भाता दिया जाता है, वह भी मन्दिरों में या क्षेत्र के ऊपर नहीं दिया जाता है। किन्तु उस स्थान से वाहिर ही दिया जाता है । जिन लोगों ने यह व्यवस्था प्रचलित की है, उनका अभिप्राय यही रहा है कि तीर्थ यात्रा से थका और भूखा-प्यासा व्यक्ति सुख-साता पावे । उन्होंने उस द्रव्य को इसी उद्देश्य से संकल्प करके दिया हा है और जो यात्री खाते हैं वे भी उसमें कुछ न कुछ रकम जमा ही करा आते हैं। वैष्णवों में दीवाली पर अन्नकाट करते है । और फिर वे स्वयं ही काम में लेते हैं। मन्दिरमार्गी दि० जैनों में भी निर्वाणोत्सव पर मन्दिरों में लाडू चढ़ाये जाते हैं, पर वे उसे काम में नहीं लेते हैं। भाई, दान द्रव्य को अपने काम में नहीं लेना चाहिए, यही इसका रहस्य है । आप भी यह करेंगे तो सदा आनन्द रहेगा। वि० सं० २०२७ कार्तिक शुक्ला ८ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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