SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० प्रवचन-सुधा कि मैं मिलने को आना चाहता हूं। भीतर से उत्तर आया--पधारिये । तब मुनीम साहब भीतर गये और सारी बात सेठानी जी से कही ओर बताया कि जव रकम मांडने का नम्बर आया तो मैंने कहा कि सवसे पहिले सेठ सारंगशाह का नाम मंडेगा । इसलिए आप जो भी रकम चाहें वह लिखा दीजिए। तब सेठानी ने कहा-मैंने कुंवर साहव से कहला दिया है न कि जितनी रकम लगेगी, वह यहां से मिल जायगी । उन्होंने कहा-आपके कहलाने पर पंच लोग शंकित दृष्टि से इधर-उधर देख रहे हैं ? तब सेठानी ने कहा-..-आप पंच लोगों को लेकर कुवर साहब के साथ तलघर में पधारें और जितनी भी रकम चाहिए हो, उसमें से निकाल लीजिए और गाड़ियां भर कर ले जाइये । सेठानी ने मनमें सोचा कि यह धन हमें अपने काम में तो लेना नही है और सेठ साहब अपने सामने ही तलघर पर लिखा कर गये हैं कि जब भी देश, जाति और धर्म पर संकट पड़े, तभी इसे काम में लिया जाये । तब वह नौकर को साथ लेकर और गेंती-फावड़ा मंगाकर सब पंचों के सामने द्वार की चिनाई को तुड़वाया। सबसे पहिले वह शिला निकली जिस पर सेठजी ने अपने ही हाथ से उक्त वात लिखी थी। फिर उसके हटाते ही भीतर चमकते हुए हीरे पन्ने और मोती माणिक के ढेर के ढेर दिखाई दिये । तभी मुनीमजी ने पंचों से कहा—ऐसे ऐसे चार तलघर भरे हुए हैं । यह सुनते ही पंच लोग अवाक् रह गये और सब हर्पित नेत्रों से एक दूसरे की ओर देखने लगे । फिर बोले-अव हमारी शाह पदवी को कोई नहीं छुड़ा सकता । पंचों के कहने से तलघर वापिस चुनवा दिया गया और उसके ऊपर पहिरेदार विठा दिये गये। अब पंच लोग सारंगशाह के नाम पर, पूरी रकम चढ़ाकर और उनका गुण-गान करते और हर्पित होते हुए बादशाह के पास पहुंचे और कहाजहापनाह, सर्व प्रकार के रत्न और जवाहिरात तैयार हैं, हुक्म दीजिये कि कीत्तिस्तम्भ कहां पर बनाया जावे। यह सुनकर बादशाह बड़ा चकित हुआ और मुस्कराते हुये बोला-आप लोगों ने मंग तो नहीं पी रखी है । ऐसा कौन-सा बादशाह है जो रत्न-और जवाहिरात से कोत्तिस्तम्भ बनवा सकता है। तव पंचों ने कहा- हुजूर हमारे एक सारंगशाह ही अनेक कीत्तिस्तम्भ वनवा सकते हैं, दूसरों की तो बात ही दूर है। तव वादशाह बोले- कत्तिस्तम्भ बनाने का स्थान तो पीछे वताऊंगा। पहिले आप लोग रकम दिखाइये। तब पंचों ने कहा- हुजूर पधारिये। तव वादशाह अपने बजीर और अनेक अमीर-उमराव लोगो को साथ लेकर चले और पंच लोग उन्हें लेकर सारंग
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy