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________________ धर्मादा की संपत्ति २६६ आखिर बग्घी मंगाई गई और पंच लोगों को लेकर मुनीम जी बगीचे में पहुचे। दिन फिरने और सार-संभाल न रहने से बगीचा मूख गया था, एवं मरम्मत न हो सकने से बंगला की दीवालें भी जहां-तहां से फट रही थी। वहां की यह हालत देखकर पंच लोग सोचने लगे - यहां से क्या मिलनेवाला है ? कहावत है कि 'चाई जी तो खालेवें, फिर वायना बा' ? जव सेठ सारंगशाह जी की सेठानी बगीचे और बंगले की संभाल भी नहीं कर सकती है, तब यहां से क्या आशा की जा सकती है, इस प्रकार सोच-विचार करते हुए पंच लोग बग्घी से उतरे । मुनीमजी ने आगे बढ़कर पहरेदार से कहा-कुबर साहब को खबर करो कि पंच लोग आये हैं । उसने जाकर कंवर साहव से कहा । उसने दादी मां के पास जाकर कहा कि शहर से पंचलोग आये हैं। उसने कहा-जाओ, बैठक को साफ कराके उन्हें सत्कार पूर्वक विठाओ और पूछो कि वे कसे पधारे ? कुचर ने नौकर को बैठक साफ करने को कहा और स्वयं बंगले के बरामदे में आकर सबका स्वागत किया और बैठक में बैठाया । कुछ देर तक लोग कुबर से कुशल-क्षेम की पूछते रहे और इधर उधर की चर्चा करते रहे । जव उनके भाने का प्रयोजन कुंवर साहब ने पूछा---तभी भीतर से सेठानीने कहलवाया--सब लोग भोजन के लिए पधारें, रसोई तैयार है । पंचों ने कहा- हम जीमने नहीं आये हैं, काम करने बाये है। नौकर ने जाकर यह वात सेठानीजी से कही । तव सेठानी ने कहा--पहिले आप लोगों को जीमना होगा। पीछे जिस काम से आप लोग आये हैं, वह होगा। सेठानी ने यह कहलाकर और थाली में सर्वप्रकार के भोज्य पदार्थ सजाकर बैठक में भिजवा दिये । पंच लोग थालों को आया देखकर मुनीम जी के आग्रह पर खाने लगे। जब सब लोग खा-पी चुके, तब मुनीम जो ने कवर साहव से पंचों के आने का प्रयोजन कहा । वे बोले--मै मां साहब से पूछ कर पाता हूं, वे जो कहेंगी, वही हाजिर कर दूंगा । यह कह कर वह भीतर गया और अपनी दादी मां से सारी बात कह सुनाई। तब उसने कहा---- पंचों से जाकर कह दो कि जितने भी कीतिस्तम्भ खड़े करने हों उनकी पूरी रकम सारंगशाह के यहां से आजायगी । जब उसने यह बात पचों के सामने ज़ाकर के कही तब सव पंच लोग एक दूसरे का मुख देखने लगे । तब मुनीम जी कहते हैं कि आप लोग इधर-उधर क्या देखते हैं, पूरा खर्च सेठ सारंगशाह के यहां से आयेगा, कागज पर कलम मांडिये। तब पंच लोग बोले--मुनीमजी, सामने कुछ दिखे तो मांडे । यहां तो दीवाले ही उनकी परिस्थिति को बतला रही हैं, फिर ये कीत्तिस्तम्भ क्या बनवायेंगे ? तब मुनीमजी ने भीतर कहलायाँ
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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