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________________ २६६ - प्रवचन-सुधां कि 'पहिले शाह, पोछे बादशाह' । उन लोगों ने कहा-जहांपनाह, आपके और हमारे पूर्वज तो भगवान के प्यार होगये हैं, सो हमें पता नहीं कि कैसे यह काहावत चली। परन्तु हम इतना निश्चित कह सकते है कि कोई भी कहावत अकारण नहीं चलती है। उसके मूल में कोई न कोई कारण अवश्य रहता है। उन लोगों ने (हमारे पूर्वजों ने) कभी कोई ऐसा ही शाही कार्य किया होगा, तभी तो यह कहावत चली । अकारण कैसे चल सकती थी। जब बादशाह ने देखा कि इसे बदलवाना सहज नही है तब उन्होंने एक तरकीब सोची और बोलेदेखो, तुम लोग मेरे इस दीवान खाने के सामने इसी की ऊंचाई वरावर का एक रत्नों का 'कोत्तिस्तम्भ' बनवाकर एक माह में खड़ा कर दोगे तो वह कहावत रहेगी, अन्यथा खत्म कर दी जायगी। सब शाह लोग बादशाह की बात सुनकर और कीत्तिस्तम्भ के बनवाने की 'हां' भरकर अपने घरों को चले आये। दूसरे दिन शाह-वंश के प्रमुख ने जाजम बिछवाई और सब शाह-लोगों को बुलवाकर पूछा आप लोग बादशाह की बात को सुन चुके हैं। अब बतलायें कि आप लोगों को 'शाह' की पदवी रखनी है, या नहीं रखनी है । सवने एक स्वर से कहा- हां, रखनी है। प्रमुख ने कहा- पदवी बातों से नहीं रहेगी। इसकेलिए आप लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ‘सर्व लोग पुन: एक स्वर से बोले --- जो कुछ भी चुकानी पड़ेगी, चकायेंगे, पर पदवी नहीं जाने देंगे। तव प्रमुख ने कहा- अच्छा तो कागज-कलम उठाओ और अपनी अपनी रकम मांडो । सबने कहा-आपसे किसी की कोई बात छिपी नहीं है। आप जिसकी जो रकम मांगे, वह सवको स्वीकार होगी। तब लिखनेवाले ने पूछापहिले किसके नाम की रकम मांडी जावे ? तब एक दूसरे का मुख देखने लगे। कोई किमी का नाम कहे और कोई किसी का नाम पहिले लिखने को कहे । सेठ सारंगशाह का वह मुनीम भी वहां उपस्थित था, जिसने वह शिला खरीदी थी और अब स्वयं लखपति बना वैठा था। उसने कहा-सबसे पहिले सेठ सारंगणाह के नाम की ओली मांडी जावेगी, पीछे औरों के नाम की मंडेगी। लोग बोले सारंगशाह तो दिदंगत हो चुके है। मुनीमजी बोलेउनका पोता तो गौजूद है और बगीचे मे अपनी दादी के माथ रहता है । लोग फिर बोले उसके पास रखा ही क्या है ? उसकी हालत तो बहुत कमजोर हो गई है। मुनीमजी बोले--कुछ भी हो, ओली तो सबसे ऊपर उनके नाम की ही मंडेगी, भले ही उनके यहां से पांच रुपये ही मिलें। जब उनकी यह हट देवी तो लोगों ने कहा-चलो उनके पास । तब कुछ ने कहा- सबके जाने की क्या जरूरत है। आप पांच पंच लोग बग्घी में वठकर चले जावे।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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