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________________ प्रवचन-सुधा की गायों के लिए प्राण दिये, तभी कहते हैं रंग पानू राठौड़। तेजाजी ने गायों की रक्षा की। उनका सारा शरीर छिन्न-भिन्न हो गया। रास्ते में काला सर्प मिला, उससे वापिस आने की प्रतिज्ञा की और फिर वापिस वहां पहुंचे और उससे कहा कि डंक मार । सांप ने कहा कि तेरा सारा शरीर तो छिन्न-भिन्न है। मैं कहां डंक मारू? तब तेजाजी ने अपनी जीभ निकाल करके कहायह धाव रहित है, इस पर तुम डंक मारो 1 सांपने सोचा यह कितना सत्यवादी और प्रतिज्ञा को निभाने वाला है। अतः उसने उसे नहीं डसा और उससे कहा-- यदि किसी व्यक्ति को काला सांप काट खायगा, वह जो तेरा नाम ले लेगा तो वह बच जायगा। तेजाजी को यह वरदान कव मिला ? जब उन्होंने अपने प्राणों की कोई चिन्ता नहीं की और अपनी प्रतिज्ञा को निभाया। ___माज लोग रामदेवजी का स्मरण करते हैं। वे कोई द्वारकाधीश नहीं थे। हम -- आप जैसे मनुष्य ही थे। उन्होंने गायों की रक्षा की, तभी रामदेवजी वाया कहलाये और आज देवता के रूप में पूजे जाते हैं। महापुरुषों के नामस्मरण से बुद्धि निर्मल होती है। आज शान्तिनाथ, नेमिनाय या पार्श्वनाथ भगवान् यहां नहीं हैं, वे तो मोक्ष में विराजमान हैं और वे किसी का भलाबुरा भी नहीं करते हैं। परन्तु उनका नाम लेने से हमारा हृदय शुद्ध होता है, इससे प्राचीन पाप गलता है और नवीन पुण्य बढ़ता है। इस पुण्य से प्रेरित होकर उनके अधिष्ठायक देव हमारा कल्याण कर देते हैं। भाई, यह सब नाम की ही करामात है। वह तभी प्राप्त होगी, जब प्रभु का नाम-स्मरण करोगे । परन्तु हम चाहते हैं कि काम कुछ करना नहीं पड़े और लाभ प्राप्त हो जाय । पर यह कैसे सम्भव है ? जो आज से प्रारम्भ करको आसोजसुदी पूर्णिमा तक नौ दिन उक्त नव पदो का अखण्डित एकान चित्त से ध्यान करते हैं, उन्हें आगामी बारह मास का शुभाशुभ स्वप्न में दृष्टिगोचर हो जाता है। यह कोई साधारण बात नहीं है। एक चमत्कारी बात है। परन्तु आज इस पर लोगों को विश्वास नहीं है। विश्वाम क्यों नहीं है ? भाई, अति परिचय से आपके मन में उसका महत्त्व नही रहा । मेरठ (उ०प्र०) में एक जैन भाई के पुत्र को सांपने काट खाया और वह विप च जाने से मूच्छित हो गया । अनेक मत्रवादी कालवेलों को बुलाया गया। परन्तु किसी से भी विष नहीं उतरा । तब निराश होकर एक मुसलमान फकीर को बुलाया गया । उसके झाड़ा देते ही विप दूर हो गया और लड़का उठकर बैठ गया । वे जनी भाई यह देखकर बड़े विस्मित हुए 1 फकीर के पैर पकड़ लिए और बोले--विष दूर करने का यह मत्र हम बतला दीजिए । जब उस भाई ने बहुत हर किया तो उसने एकति
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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