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________________ नमस्कारमंत्र का प्रभाव नव रात्रियां आत्मा के कल्याण के लिए है और नव ऋद्धियां संसार के कल्याण के लिए हैं। भाई, यात्मकल्याण के साथ सासारिक कल्याण साथ में ही रहता हैं । जैसे खेती से गेहूं प्राप्त होता है, तो भूसा भी साथ में प्राप्त हो जाता है। उसके लिए अलग से खेती नहीं करनी पड़ती है। जो वस्तु आत्म-कल्याण करनेवाली है, वह संसार का कल्याण तो सहज मे ही करती है। इस नवकार पद का माहात्म्य बतलाते हुए कहा गया है कि-- त्रिलोकीमूल्य-रत्नेन दुर्लभः किं तुषोत्करः । अर्थात्-जिस नमस्कार मंत्र रूप महारत्ल के द्वारा तीनों लोक खरीदे जा सकते हैं, उसके द्वारा क्या भूसे का ढेर पाना दुर्लभ है ? कभी नहीं। भाइयो, आप लोग सांसारिक सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए तो सदा उद्यत रहते है। परन्तु आत्म-कल्याण की ओर आपका ध्यान ही नहीं है। इससे न तो आपका आत्मकल्याण ही होता है और न सासारिक कल्याण ही होता है। भाई किसी की बरात में जाते हो, वहां पर जब ओली लिखते हो, तव ओली मिलती है । जव नोली का मुख खोलते हो, तब ओली मिलती है। नोली में से जव रुपये वाहिर निकालते हो, तब ओली हाथ में आती है। लेने वाला मात्मा है, द्रव्य रूपी ओली है और देता है--शरीर ! शरीर में से कब निकले ? जैसे नोली में से माल निकलें, इसी प्रकार इस ओली के प्रसाद से आत्मा में से भी माल मिलता है। जब आप अपना माल दुनिया को लुटाना चाहेंगे तभी आपको भोली मिलेगी। सिद्धि साधना से मिलती है भगवान महावीर के समवसरण में चौदह हजार सन्त थे और सभी पुण्यवान् थे । परन्तु यश प्राप्त किया धनाजी ने। उन्होंने साधुपना केवल नौ मास पाला । इसी प्रकार भगवान नेमिनाथ के सन्तों में ढंढण मुनि ने यश प्राप्त किया। भाई, यह यश यों ही नहीं मिल गया। किन्तु जब उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया, नब मिला है। हम कष्ट तो किसी प्रकार का उठाना चाहते नहीं, और चाहते है कि जोधपुर और जयपुर का राज्य मिल जाय ? तो कैसे मिल सकता है ? आप लोग आकरके कहा करते हैं कि महाराज, कोई मंत्र बताने की कृपा करें, जिससे कि हमारा दरिद्र दूर हो जाय और संकट टल जाय । परन्तु भाई, मंत्र के बता देने से ही सिद्धि नही मिलेगी। सिद्धि के लिए तो मन-वचन-काय से साधना करनी पड़ेगी, तब वह प्राप्त होगी। विना त्याग-लपस्या के कोई भी सिद्धि प्राप्न होनेवाली नहीं है । जो त्याग-तपस्या करते हैं, वे ही सिद्धि को प्राप्त करते हैं। पानू ने घोड़ो के लिए और चारण
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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