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________________ प्रवचन -मुत्रा द्वारिका पुरी इतने वर्षो तक जो अखंडित रही, वह आयंबिल का प्रताप था । जो भी व्यक्ति विश्वास पूर्वक आयविल तप करे और नवकार मंत्र का प्रकार चित्त से जप और ध्यान करे, उसके ऊपर पहिले तो किसी भी प्रकार का विघ्न, उपद्रव और चिन्ता आदि आयेंगे ही नही । यदि कदाचित् पूर्वोपार्जित तीव्र पाप के उदय से आ भी जाय, तो वह नियम से दूर हो जायगा । भाई, एक वार शुद्ध अन्त करण से नवपद का स्मरण करों, कोई भी विघ्न वाधा नहीं आयगी । यदि जाप करते हुए विघ्न-बाधा आये, तो समझो कि व्रतविधान और लव -पद-जाप विधिपूर्वक नहीं हो रहा हे और पुण्यवानी मे भी कसर है | यदि आनेवाले विघ्न टल जाये, तो समझना चाहिए कि दिन- मान अच्छे है -- हमारा वेडा पार हो जायगा । १४ आप लोग प्रतिदिन सुनते है और आपके ध्यान में भी हैं कि श्रीपाल और उनके साथियो की क्या स्थिति थी ? वे कैसे सकट में पड़े और अन्त मे किस पद पर पहुचे । भाई, यह सब नवपद के स्मरण का ही प्रताप है । इस नवपद की ओली आती है आसोज सुदी सप्तमी और चैत्र सुदी सप्तमी से । इस नवपद मे क्या रहस्य भरा है, यदि आप शान्ति से सुनने और समझने का प्रयास करे तो आप को यह रहस्य ज्ञात हो जायगा । इस एक सज्झाय मे श्रीपाल का सारा चरित्र गर्भित हैं और सारी बाते उसमे बता दी गई हैं । मनकी गति को रोकने के लिए यह 'ओली' बताई गई है । यदि इसे पल्ले बाधोगे, तो यह माल अन्त तक आपके साथ चलेगा । ये दुनियादारी के मालजिन्हे आप भारी सभाल करके रखते हैं, वे साथ मे जाने वाले नही है । परन्तु नवपद का स्मरण अवश्य साथ मे जायगा । भाई, ऐसा सुवर्ण अवसर आप वार-वार चाहे तो मिलना संभव नही है । इसलिए प्राप्त हुए इस उत्तम अवसर को हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए । श्रीपालजी को गुरु महाराज ने एक वार ही आदेश दिया कि नौ आयविल करो । उन्होंने उसे शिरोधार्य कर लिया और विधिवत् नवकार मंत्र का सावन किया । वे काढीपन की दशा मे जगल में थे, जहाँ पर किसी भी प्रकार की जोगवाई नहीं थी । परन्तु स्वधर्मी भाई ने वहा पर भी सव सुविधाएं जुटा दी 1 एक-एक ओली में एक-एक सिद्धि मिलती है । भाई, नौ निधिया है और ये नौ ही मोलिया है। ऋद्धि-सिद्धि भी नौ ही ह और सनातनियों के अनुसार दुर्गा भी तो ह । जो लोग दुर्गा पाठ करते हैं, तो उसके भी सात सौ श्लोक है | आपके यहां भी सप्तशती है, उसके भी मात सौ श्लोक है । इस सप्तशती का आप लोग पाठ करे और अपनी पुण्यवानी को वढावे । ये नवसिद्धि रूप
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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