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________________ नमस्कारमंत्र का प्रभाव पंच परमेष्ठियों में पहिला पद अरिहन्त का है, उनका वर्ण लाल कहा गया है। दूसरा पद सिद्ध का है, उनका वर्ण श्वेत है। तीसरा पद आचार्य का है, उनका वर्ण हरा है। चौथा पद उपाध्याय का है, उनका वर्ण पीला है और पांचवां पद साधु का है, उनका वर्ग एयाम माना गया है। जिस पद का जैसा वर्ण है वैसे ही वर्ण का आयंबिल किया जाता है। इन पंच परमेष्ठियों के चार गुण है-मो णाणस्स, णमो दंसणस्स, णमो चरित्तस्स, णमो तवस्स। इनमें सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को नमस्कार किया गया है। नमस्कार मन्त्र के पांचों पदों में पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। आचार्यों ने इस नमस्कार मन्त्र का माहात्म्य बतलाते हुए कहा है कि एसो पंच णमुमकारो सन्दपावप्पणासणो। मंगलाणं च सन्वेसिं पढ़मं हबइ मंगलं ॥ अर्थात् यह पंच नमस्कार मंत्र सर्व पापों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। उक्त पंच परमेष्ठी और ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन नव पदों का जाप नौ करोड़ प्रमाण कहा गया है। जिसके पुण्यवानी पोते होवे, वही नौ करोड़ का जाप कर सकता है। यदि पुण्यवानी न हो और कोई जाप करें तो अनेक विघ्न खड़े हो जाते हैं। भाव पूर्वक जाप करने वाले के लिए कहा गया __'नौ लख जपतां नरक दाते, नौ कोडि जपता मोक्ष जावे । किन्तु भाई, माला हाथ में चलती रहे और नींद लेते हुए कुछ का कुछ जाप करता है, तो उससे कोई लाभ नहीं है। हो, आयंविल करी, जप करो और उन पदों के अर्थ-चिन्तन में लीन हो जाओ, तभी जाप का फल प्राप्त होता है। भाई, ग्यारह वर्ष तक द्वारिका का कुछ नहीं बिगड़ा, जब ग्यारह वर्ष, ग्यारह मास और उनतीस दिन निकल गये और अन्तिम दिन आया, तव यादवों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई कि अब क्या द्वारिका जल सकती है। वे सोचने लगे कि अब कुछ हानि होने वाली नहीं है। कृष्ण महाराज तो यो ही कह रहे हैं और लोगो को डरा रहे है । उस समय द्वारिका में भी नवकारसो, पोरसी और आयंबिल आदि करने वाले अनेक व्यक्ति थे । परन्तु होनहार तो हो करके ही रहती है। अन्तिम दिन यादवों के घरों में एक भी त्यागवाला नहीं था। भगवाज भी वहां नहीं थे। जहाँ तीर्थकर भगवान् विराजते है, वहा सौ-सौ कोस तक ईति, भौति आदि किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं होता है।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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