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________________ २४६ प्रवचन-मुधा गया और सिंह उम व्यक्ति के सामने आया, तो उसने उने देग्रन ही पहिचान लिया कि यह तो वही उपमारी पुस्प है, जिसन नि मगाटा निकाला था, अत उमकी ओर कृतज्ञता मरी नजर से देखकर और उमरे चरण-गर्ग परने के बहाने से मानो पर चाटार सौर प्रदक्षिणा देर वापिग अपने विजट्टे म चला गया । राजा न भी उस पुनप को निर्दोष नमन कर जा दिया । भाइयो, देखा आपने उदारता और दूसर ये दउ मे महायता करने का प्रभाव—कि स्तू ग्वार और भूखे सिंह ने भी उसे नहीं पाया । इसी प्रकार जो पुरुप बिना किसी भेद नाव के पक्षपात-रहित होकर सभी प्राणिया ने प्रति उदार भाव रखते हैं, करुणा रस न जिनका हृदय भरा रहता है और निरन्तर दूमर के दु ख को दूर करते रहते है, वे समार में मर्वन निमंय विचरत है और सव जनों के प्रिय हात हैं। उदार के हृदय मे कण कण मे रस उदार व्यक्ति कभी यश का भूखा नहीं होता । दूसरे का बड से बडा भी उपकार करके न उसमे प्रत्युपकार की ही भावना रखता है और न मसार से यश पाने की ही कामना करता है । वह तो जो कुछ भी दूमरा के साथ मलाई का काम करता है, उसे अपना क्त्तव्य मान कर ही करता है । वह नाम का नही, कामका भूखा होता है । उसकी आत्मा मरग रग म क्रुणा का एसा रस भरा होता है जैसे कि सेलडी के प्रत्येक कण मे मिष्ट रस भरा होता है। उदार व्यक्ति के पास काई मनुप्य किसी भी सकट के समय उसे दूर करने की भावना में जाय तो वह उसके सकट को तन्काल दूर करता है और उसे आश्वासन देता है कि आप इस सकट में बिलकुल नहीं घवडाइये, मैं आपका ही हू, यह सकट आप पर नहीं, किन्तु मेरे ही ऊपर आया है और उसे में अपना तन, मन और धन लगा करके दूर करमा। इस प्रकार उदार मनुष्य प्रत्येक व्यक्ति के साथ अपने कुटुम्बी व समान ही व्यवहार करते हैं। उनमे अल्कार नाम मात्र को भी नहा हाता है । अनुदार मनुष्य दूसरे प्रकार के अनुदार मनुप्य होते हैं। उनके हृदय मे उदारता का नाम भी नहीं होता। अनुदार व्यक्ति स्वार्थपरायण एवं कृपण होता है। अनुदार मनुप्य स्वय तो कृपण होता है पर वह यदि विनी सस्था का ट्रप्टी या अधिकारी बन जाता है, तो वह उसके कार्यकर्ताओ के साथ भी अनुदारता का व्यवहार करता है ! दूध के लिए रखे हुए अपने गाय #म आदि पशुओ के
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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