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________________ मनुष्य की चार श्रेणियां २४७ साथ भी वह अनुदारता रखता है और उन्हें भरपेट खाना नहीं देता। ऐसा करने से भले ही उसे दूध कम मिले, पर उसका उमे विचार नहीं होता । अनुदार मनुष्य अपनी स्त्री पुत्रादि के साथ भी कृपणता करता है और उनके समुचित आहार-विहार की भी व्यवस्था नहीं करता है। और तो क्या, ऐसा व्यक्ति अपने भी आहार-विहार में कंजूसी करता है। अनुदार व्यक्ति यदि रेल में मुसाफिरी कर रहा है तो चार व्यक्तियों के स्थान को घेर कर स्वयं सोना चाहता है, पर स्त्रियों और छोटे छोटे बच्चों को खड़े देखकर उन्हें बैठने के लिए स्थान नहीं देता है. बल्कि स्थान देने के लिए कहने पर लड़ने को उद्यत होता है । अनुदार मनुष्य रुपये का काम पैसे से ही निकालने का प्रयत्न करता है । यह बचनों तक में अनुदार होता है। यदि किसी का विगड़ता काम उसके वोलने मात्र से बनता हो तो वह बोलने मे भी उदारता नहीं दिखा सकता । जबकि संस्कृत की सुक्ति तो यह है कि 'वचने का दरिद्रता' अर्थात् वचन बोलने में दरिद्रता क्यों करना, क्योंकि बोलने में तो पास का धन कुछ खर्च होता नहीं है। पर अनुदार मनुष्य बोलने में भी अनुदार ही होता है। ऐसे व्यक्ति का हृदय बहुत कठोर होता है, दूसरों को दुःख मे देखकर भी उसका हृदय पसीजता तक नहीं है। कोई भी जाकर उससे अपना दुःख कहे तो वह मौखिक सहानुभूति भी नहीं दिवा सकता। संक्षेप में इतना ही समझ लीजिए कि अनुदार मनुष्य उदार पुरुप से ठीक विपरीत मनोवृत्ति वाला होता है । इनसे किसी भी व्यक्ति का उपकार नहीं होता, प्रत्युत अपकार ही होता है। अनुदार मनुष्य तो पृथ्वी के भार-भूत ही होते हैं। जबकि उदार व्यक्ति पृथ्वी के उद्धारक एवं संसार के उपकारक होते हैं । ___ आन बान का पक्का तीसरे प्रकार के सरदार मनुष्य हैं। उनके भीतर सदा ही बड़प्पन का भाव बना रहता है । सरदार मनुप्य सोचता है कि जब लोग मुझे बड़ा मानते हैं और सरदार कहते है तो मै हलका काम कैसे करूँ ? मुझे तो अपने नाम के ही अनुरुप कार्य करना चाहिए । सरदार मनुष्य देण पर, समाज पर धर्म के ऊपर संकट आने पर उसकी रक्षा के लिए सबसे आगे जाकर खड़ा होता है। उसके हृदय में ये भाव उठते रहते हैं कि---- . 'सर जाय तो जावे, पर शान न जाने पावें । जो देश, समाज और धर्म की रक्षा के लिए मिर देने को सदा उद्यत रहता है, वही सरदार कहलाता है। रईसी प्रकृति के लोग भी सरदार कहलाते है। उनके पास जो भी व्यक्ति कामना में जाता है वह खाली हाथ नहीं
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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