SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य को चार थेणियां २४५ अयं निजः परो वेति, गणना लघु चेतसाम् । . उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ भाई, यह अपना है और यह पर है.--- दूसरा है-ऐसी गिनती तो लघु हृदय वाले क्षद्र व्यक्ति किया करते हैं 1 किन्तु जो पुरुप उदारचरित हैंविशाल हृदय वाले होते है वे तो सारे संसार को अपना ही कुटुम्ब मानते है । जरो--कुटुम्वका प्रधान पुरुप अपने कुटुम्ब की सार-संभाल करता है और उसके दुख दूर करने को सक्षा उद्यत रहता है, उसी प्रकार उदार व्यक्ति भी प्रत्येक प्राणो के दुःख दूर करने का अपना कर्तव्य समझता है और उसे दूर करने का तत्काल प्रयत्न करता है । यही कारण है कि सभी लोग उससे प्यार करते हैं । और स्नेह की दृष्टि से देखते हैं। मनुष्य की तो बात ही क्या है, पशु-पक्षी और खूल्वार जानवर तक उसे स्नेह से और कृतज्ञता-भरी आखों से देखते है । आप लोगों ने देखा होगा कि जो व्यक्ति अपनी गाय-भैसो के ऊपर सदय व्यवहार करते हैं, उनको समय पर खाना-पानी देते हैं और प्रेम से उनके ऊपर हाथ फेरते हैं, वे जानवर उस व्यक्ति की ओर कितनी ममतामयी नजर से देखते हुए अपनी कृतज्ञता प्रकट करते रहते हैं ! सिंह ने भी स्नेह किया : हमने अपने बचपन में हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में पढ़ा था कि एक बार एक मनुष्य किसी जंगल से जा रहा था, उसे एक स्थान पर झाड़ी में से किसी जानवर के कराहने की आवाज सुनाई दी। उसका हृदय करुणा से प्रेरित हत्या और वह उधर गया--जहां से कि आवाज आरही थी। उसने देखा कि एक सिंह (बब्बर शेर) पीड़ा से कराह रहा है। वह निर्भय होकर उसके समीप गया तो देखा कि उसके एक पंजे में बहुत बड़ा कांटा लगा हुआ है और उससे खून निकल रहा है। उसने सिंह के पंजे को पकड़कर पहिले तो हाथ से काटा खीचने का प्रयत्न किया। पर जब वह नहीं निकला तो उसके पंजे को उठाकर अपने मुख के पास करके और अपनी दाढ़ी में कांटे के ऊपरी भाग को दवाकर पूरी ताकत से जो खीचा तो कांटा निकल आया । पर खून की धारा और भी अधिक जोर से बहने लगी। उसने अपने साफे से एक पट्टी फाड़ी और पास की झाड़ी मे कोमल पत्ते तोड़कर और उन्हें मसल कर घाव पर रख के ऊपर से पट्टी बांधकर अपने घर चला आया । भाग्यवश वह किसी अपराध में पकड़ा गया और उसे सिंह के सामने खाने को छोड़ने की मजा सुनाई गई। इधर भाग्य से उक्त सिंह भी पैर के दर्द से भागने में असमर्थ होने के कारण पकड़ा गया था और राजा के पिंजड़े में बन्द था । जव पिंजड़े का द्वार खोला
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy