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________________ १२ प्रवचन-सुधा को मारते हैं। जो लोग एक वार धर्म से 'भ्रष्ट हो गये, वे दूसरों को भी भ्रष्ट करते रहते हैं। इससे व्यभिचार बढ़ रहा है और खान-पान भी बिगड़ रहा है । यह सब क्यों हुआ? क्योकि सनातन सम्प्रदायवालों ने इन कुप्रवृत्तियों का प्रारम्भ होते ही उन्हें दूर करने का प्रयत्न नहीं किया। जब कोई कुप्रथा एक वार किसी सम्प्रदाय में घर कर लेती है, तब उसे दूर करना कठिन हो जाता है। यद्यपि अनेक बुद्धिमान सनातनी इन कुप्रवृत्तियों को बुरा कहते हैं और जीव-घात को महापाप कहते हैं । परन्तु कहने मात्र से कोई दुष्प्रवृत्ति दूर नहीं हो सकती । उसके लिए तो जान हथेली पर रखकर प्रचार करना होगा। तब कहीं बन्द होने की आशा की जा सकेगी। तप-त्याग का प्रभाव हां. तो मैं कह रहा था कि आज से जैनियों की नवरात्रि प्रारम्भ हो रही है। यहां हिंसा का काम नहीं है और न किसी प्रकार की अन्य कुप्रवृत्तियों का नामो-निशान है। यहां तो केवल दया का पालन करना है । दया को पालने के लिए इन्द्रियों के विकारों को जीतना पड़ता है। और वह तव सम्भव है, जबकि त्याग-तपस्या हो । नवरात्रियों में पहिले सब लोग आयंविल करते थे । इन दिनों लोग नीरस, लूखा और अन्दना खाते हैं। वह भी कैसा ? केवल दो द्रव्य लेना, तीसरे का काम नहीं । यदि गेहूं की गंधरी खाली तो खांखरे, चावल और रोटी नहीं खा सकते । चना लेंगे तो केवल उसे ही लेंगे। आज कल तो लोगों ने भगवान के द्वारा बतलाये हुए त्याग-प्रत्याख्यानों को तोड़मरोड़कर रख दिया। अब नाम तो ओलियों का है, परन्तु रोलियां कर रहे हैं। जैसे गेहूं में रोली लग जाती है, तो वह फिर ठीक रीति से नहीं पक सकता है। उसी प्रकार आज नाम तो ओलियो का है, परन्तु कहते हैं कि नीदू-नमक डाल दो। ढोकलियां बनाते है, तथा और भी अनेक प्रकार की खाने की वस्तुएं बनाते हैं और थोड़ा-थोडा सबका स्वाद लेते हैं। परन्तु आयविल तो वही है कि एक अन्न लिया और उसे पानी में निचोड़ कर खालिया। इस प्रकार के आयंबिल का ही महत्त्व है। इसे ही लूखा एकाशन कहते हैं। इस रीति से यदि इन नवरात्रियों में नी आयंबिल करलें, तो यह अठाई से भी अधिक तपस्या है। कारण कि अठाई करने से जितनी शक्ति क्षीण नहीं होती हैं, जितनी कि आयंबिल करने से होती है। यूखे रहने से शक्ति नष्ट नही होती है, परन्तु नमक नहीं खाने से बहुत शक्ति प्रष्ट होती है। भाई, अपनी इन्द्रियों को वश में करने के लिए जैनियों की पै नवरात्रियां हैं। इन दिनों पंच परमेष्ठी के वाचक पांच पद और ज्ञान, दर्शन. चारित्र और तप ये चार गुण, इन नौ का जप, ध्यान, स्मरण और चिन्तन किया जाता है ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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