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________________ नमस्कार मंत्र का प्रभाव देवी पूजा के नाम पर हिन्दुओं की नवरात्रि में दुर्गा के सम्मुख बकरे, भैसे आदि पशुओं की वलि चढ़ाई जाती है। हिन्दु लोग भैरव की माता को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की हत्या करते है। कितने ही लोग अपनी सन्तान के दीर्घजीवन की माशा से और कितने ही लोग अनेक प्रकार के भयों से संत्रस्त होकर मूक पशुओं की गर्दनों पर खटाखट तलवारे-चलाते है और खून की धाराएं वहाते है। प्रारम्भ में जो आर्य धर्म हिंसा से सर्वथा रहित था, वही पीछे जाकर हिंसामय हो गया । बीच के समय में वामपंथियों का राजा लोगों पर प्रभाव बढ़ा और उन्होंने यह प्रचार किया कि हिंसा से ही शान्ति मिलती है। इस लोक में सन्तानप्राप्ति के लिए, धनोपार्जन के लिए, तथा परलोक में स्वर्ग पाने के लिए यज्ञ करना आवश्यक है और यज्ञों में वकरे आदि भूक पशुओं का हवन करना जरूरी है। इस प्रकार का उपदेश देकर हिंसामय यज्ञों का उनके पुरोहितों ने भरपूर प्रचार किया । भाई, भली बातें तो दिमाग में बड़ी कठिनाई से जमती हैं । परन्तु दुरी बातों का प्रभाव मनुष्य पर जल्दी होता है। वायों की जाति में राती जोगा देते हैं, तो शाम से लेकर सबेरे तक गीतों का अन्त आता है क्या ? नहीं ! परन्तु यदि जैन समाज में एक चौवीसी गवाई जावे, तो वह भी शुद्ध नहीं बोल सकेगे। उसमें अशुद्धियों को भर-भार रहेगी। अरे, चौवीसी छोड़ो और सैकड़ों स्त्रियों को नवकारमंत्र भी शुद्ध नहीं आता है। इसका कारण यह है कि लोग विपय-कपाय की प्रवृत्तियों से चिर-परिचित है। किन्तु धर्म से अभी तक भी-~-जैनकुल में जन्म लेने पर भी अपरिचित ही हैं। वामपन्थ में भी कुडापन्थ और कांचलियापन्थ हो गये हैं। कुडापत्थियों में पंच मकार के सेवन का भारी प्रचार रहा है। वे पंच मकार हैं---मांस, मदिरा, मद्य, मैधन और मछली। कांचलियापन्थी कुडापन्थियों से भी आगे बढ़ गये । वे लोग अपने सम्प्रदाय की स्त्रियों की कांचलिया (चोलियां) एक धड़े में डालते हैं और फिर सूट मचाते हैं। यदि बेटी की कांचली वाप के हाथ में आजाय, या सास की जमाई के हाथ में आजाय, तो वह उसके साथ मैथुन सेवन करता है। उनका कहना है कि सच्चा धर्म तो हमारे ही पास है, क्योंकि हम लोगों ने ममता को जीता है और हम लोग बिना किसी भेद-भाव के परस्पर में स्त्रियो का विनिमय करते है। वे कहते है कि अंगदान या रतिदान तो गंगा में स्नान करने के समान पुण्य कार्य है। आज के संसार के विषय-कपायों के पोषण करनेवाले अनेक पन्ध प्रचलित हैं। अनेक पन्थवाले रात को जंगल में जाते हैं, सगति करते है और प्राणियों
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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