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________________ प्रवचन-सुधा स्वर्ण-यव भाड्यो, यह सब किसका प्रताप था ? उम देवता का, जिसने पूर्वभव के स्नेह-वहा बार-बार आकर के मेतार्य को सचेत किया। मेतायं दिन प्रतिदिन अपनी तपस्या बनाने लगे। धीरे-धीरे मास क्षपण का पारणा करने लगे । तपस्या के प्रभाव से उनको अनेक ऋद्धियां प्राप्त हो गई। ये उसे ही प्राप्त होती हैं, जो महान तपस्वी होता है। जब भगवान ने वहां से विहार किया तो मेतार्य मुनि ने भी साथ मे ही विहार किया। और बारह वर्ष तक भगवान के साथ विभिन्न देशो और नामों में विचरते हुए ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहे । मान-खमण की तपस्या से उनका शरीर सूख कर अस्थि-पंजरमात्र रह गया। चलते समय उनके शरीर की हड्डियां खड़खड़ाने लगीं। शरीर में यद्यपि चलने की शक्ति नहीं थी, पर आत्मिकवल के जोर से वे विचर रहे थे। कुछ समय के बाद भगवान् फिर राजगृही पधारे। मेतार्य ने मास-खमण की पारणा के लिए भगवान की अनुना लेकर नगरी में प्रवेश किया और उत्तम, मव्यम सभी घरो में गये, परन्तु कहीं पर भी निर्दोष आहार नहीं मिला। इस प्रकार गोचरी के लिए विचरते हुए एक सोनी ने इन्हें पहिचान लिया और वह दुकान से उठकर सामने आया और प्रार्थना की, स्वामिन, मुझ भिखारी को भी तारो और आहार लेने के लिए भीतर पधारो । सोनी की भावना है कि ये ऋद्धिसम्पन्न, जुगमन्दिर मेठ के पुत्र और राजा श्रेणिक के जमाई मुनिराज हैं, इनको आहार देने से मुझे धन की प्राप्ति होगी । ससार बड़ा स्त्रार्थी है । सामायिक में बैठता है किन्तु माला स्वार्थ की फेरता है । पर यदि स्वार्थ की भावना छोड़कर भगवान के नाम की माला फेरे तो वह फले । उसने भीतर ले जाकर उन्हें यथाविधि पारणा कराई। जब वह गोचरी बहरा रहा था, तभी एक तीन दिन का भूखा सूकड़ा उसकी दुकान में घुसा । वहां पर चलना रानी के हार के लिए सोने के १०८ जबलिए तैयार रखे हुए थे---- कूकड़े ने उन सबको चुग लिया। सोने की जब पेट में पड़ जाने से वह उड़ नही मुका और घरके भीतर जाकर किसी सुरक्षित स्थान में बैठ गया। जब मेतार्य मुनि गोचरी वहर कर वाहिर पधारे और सोनी दुकान पर आया बहरी ने मुनि पाछा फिरिया, सोना जब नहिं पाया । हाय जोड़कर करे बीनती, कंचण-जव कुण खाया ।। तुम हम दुहू घर में जन नहिं आव्यो तीजो । देख्यो होय तो मोहि बताओ, लेगयो जव कुण वीजो ॥ दुकान में सोने के जौकी थाली को खाली देखकर एकदम चकराया कि सोने के जी को कौन ले गया है ? अब मैं राजा का सोना कहां से दूंगा । अरे,
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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