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________________ १८४ प्रवचन-सुधा दृष्टि रखता है कि कहीं कोई उक्त वस्तुओं का सेवन तो नहीं करता है। इस प्रकार दोनों स्त्रियों के साथ अपने ससुर भरत नट के ऐश्वर्य का उपभोग करते हुए बहुत समय बीत गया। एक वार राजगृही नगरी में एक विदेशी नट आया । वह नृत्य कला में बड़ा कुशल था। पैरों में पुतले वांध करके नृत्य किया करता था । वह राजा श्रेणिक की सभा में गया और नमस्कार कर श्रेणिक से बोला-महाराज, आपके राज्य में जो भी कुशल नृत्यकार नट हों उन्हें बुलाइये, यदि वे मुझे जीत लेंगे तो मैं उनका दास बन जाऊंगा। अन्यथा आपका पुतला पैरों में वांधकर सर्वत्र नृत्य दिखाऊंगा । उसकी बात सुनकर श्रेणिक ने अपने सभी नामी नटों को बुलाया और उस विदेशी नट के साथ नृत्य करने को कहा। परन्तु सभी नट उससे हार गये । श्रेणिक यह देखकर बड़ा चिन्तातुर हुआ और उसने भरत नट को बुलाकर कहा---भरत, अब इस विदेशी नट के साथ नृत्य करने की तेरी वारी है । देख, कहीं ऐसा न हो कि यह तुझे हरा दे, अन्यथा राज्य की शान चली जायगी । श्रेणिक की बात सुनकर भरत बोलामहाराज, मैं इसे नहीं हरा सकता, कारण कि इसके भीतर अनेक कलाए हैं और अब मैं वृद्ध हो गया हूं 1 किन्तु यदि आप आज्ञा देवें और मेरे जमाईराज स्वीकार कर लेवें तो बात नहीं जायगी और शान बनी रहेगी । यह कह कर वह अपने घर माया। उसे चिन्तित देखकर लड़कियों ने पूछा-पिताजी, आज उदास क्यों दीख रहे हैं। भरत नट ने सारी बात लड़कियों को बताई। लड़कियों ने जाकर अपने पति आपाढभूति से कहा । उसने हंसकर कहा--यह कौनसी बड़ी बात है । तुम जाकर अपने पिताजी से कह दो कि वे कोई चिन्ता न करें, मैं उस विदेशी नृत्यकार के साथ नृत्य करूंगा । लड़कियों ने जाकर यह वात अपने पिता से कह दी और उसने जाकर राजा श्रेणिक से कह दिया कि उस विदेशी नृत्यकार के साथ मेरे जमाईराज नृत्य करेंगे । राजा श्रेणिक ने नगर में घोषणा करा दी कि आज उस विदेशी नृत्यकार के साथ भरत नट के जमाईराज प्रतियोगिता में खड़े होकर नृत्य करेंगे। घोपणा सुनकर नियत समय पर सब सरदार और नगर के प्रधान लोग राज सभा में एकत्रित हो गये । पहिले विदेशी नृत्यकार ने नृत्य प्रारम्भ किया । उसके नृत्य को देखकर सारी उपस्थित जनता मंत्र-मुग्ध होकर चित्रलिखित सी स्तब्ध हो गई । तव भरत के संकेत पर आपाढ़भूति रंगभूमि में उतरे । इन्हें अनेक ऋद्धियाँ सिद्ध थीं। अत: उन्होंने सर्व रस और भावों से भरा ऐसा नृत्य विया कि जिसे देखकर सब लोग वाह-वाह कह उठे और जयकार की ध्वनि से
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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